प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के सर्वाधिक विश्वसनीय स्रोत पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Source) हैं।
Archaeological Source
पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Source)
पुरातत्व का तात्पर्य अतीत के अवशेषों के माध्यम से मानव क्रिया-कलापों का अध्ययन करना है।
हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के उत्खनन से भारतीय सभ्यता व संस्कृति का प्रारम्भ 6,000 ई. पू. से 5000 ई. पूर्व तक पीछे चला गया।
कलिंग नरेश खारवेल की जानकारी हाथी गुम्फा अभिलेख से ही मिलती है। इतिहास के भौतिक साक्ष्य इन्हीं स्रोतों में है।
पुरातात्विक स्रोतो (Archaeological Source) का विभाजन निम्नानुसार किया जा सकता है –
(1) उत्खनन से प्राप्त पुरावशेष
(2) अभिलेख
(3) सिक्के व मुद्राएं
(4) स्मारक व भवन
(5) मूर्तियाँ, शैलचित्र कला व अन्य कलाकृतियाँ आदि ।
(1) उत्खनन से प्राप्त अवशेष (मृद्भाण्ड, औजार व उपकरण )
पाषाणकालीन मानवीय संस्कृति व सभ्यता के बारे में जानकारी के लिए उत्खनन से प्राप्त पुरावशेष ही मुख्य स्रोत हैं।
प्राप्त औजारों एवं मृद्भाण्डों (मिटटी के बर्तन) से हम भारत में मानव की विकास यात्रा को समझ सकते है ।
सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की जानकारी उत्खनन से प्राप्त सामग्री पर ही आधारित है।
प्रारम्भ में तो पाषाण उपकरण अधिक प्राप्त हुए।
जब मृद्भाण्ड का मानव उपयोग करने लगा तो सर्वाधिक मात्रा में इनके अवशेष मिले हैं।
इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन भारत में चार मृद्भाण्ड संस्कृतियाँ विद्यमान रही हैं :-
(I) गेरूए रंग युक्त मृद्भाण्ड संस्कृति (Ochre coloured Pottery or OCP संस्कृति)
(ii) काले व लाल मृद्भाण्ड परम्परा (Black Ware or BRW Red संस्कृति )
(iii) चित्रित स्लेटी रंग की मृद्माण्ड संस्कृति (iv) (Painted Grey Ware or PGW संस्कृति)
(iv) उत्तरी काली चमकीली परम्परा (North Black Painted Ware or NBPW संस्कृति)
उत्खनन में सड़कें, नालियाँ, भवन, ताम्बे व कांस्य सामग्री, औजार, बर्तन, आभूषण आदि पुरावशेष मिले हैं, जिससे तत्कालीन मानव समाज व संस्कृति की जानकारी मिलती है।
(2) अभिलेख
भारतीय पुरास्रोत में अभिलेखों का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
तिथियुक्त एवं समसामयिक होने के कारण ऐतिहासिक दृष्टि से इनका महत्त्व अधिक है।
शासन विशेष के तिथिक्रम एवं उपलब्धियों की जानकारी इन अभिलेखो से ही मिलती है।
स्थानाभाव के कारण इसमें अनावश्यक सामग्री भी नहीं मिलती। इनमें सम्बन्धित शासक व व्यक्तियों के नाम, वंश, तिथि, कार्य व समसामयिक घटनाओं आदि का उल्लेख होता है।
जैसे अशोक के अभिलेख, खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, गौतमीपुत्र सातकर्णी का नासिक अभिलेख एवं प्रयाग प्रशस्ति के बिना प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी अधूरी अशोक के अभिलेख खरोष्ठी एवं ब्राहमी लिपि में है।
अशोक के शिलालेख, स्तम्भ लेख और गुहालेख तीनो प्रकार के अभिलेख मिलते हैं।
अशोक के अभिलेख कला के भी उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये अभिलेख लम्बे-कलात्मक स्तम्भ व शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं। जूनागढ़ का रूद्रदामन का शिलालेख भी काफी प्रसिद्ध है।
स्तम्भ लेखों में अशोक के अलावा चन्द्र का मेहरोली स्तम्भ लेख, स्कन्द गुप्त का भीतरी स्तम्भ लेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ लेख प्रमुख है।
ताम्र लेख से गुप्तो के इतिहास की जानकारी मिलती है। प्रभावती गुप्ता का ताम्र लेख विशे उल्लेखनीय है।
गुहालेखों में अशोक के बराबर गुहालेख, दशरथ के नागार्जुनी गुहालेख, सातवाहनों के नासिक व नानाघाट गुहालेख अधिक उपयोगी है।
कई मूर्तियों के भी शीर्ष या अधोभाग में शासकों ने लेख लिखवाए हैं, जिनसे उनके बारे में जानकारी मिलती है। ये मूर्ति लेख कहलाते हैं। इन अभिलेखों के द्वारा विभिन्न शासको के समय की महत्वपूर्ण घटनाओं तथ्यों की जानकारी के साथ ही आर्थिक सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक जानकारियां मिलती हैं |
(3) सिक्के व मुद्राएँ
प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी में सिक्कों, मुद्राओं व मोहरों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इनसे शासकों के नाम, तिथियाँ, चित्र वंशपरम्परा, धर्म, गौरवपूर्ण कार्यों, कला, शासक की रूचि आदि की जानकारी मिलती है।
गुप्तकालीन सिक्कों से हमें महत्वपूर्ण सूचनाएं मिलती हैं।
समुद्रगुप्त के वीणा वादक व व्याघ्र निहन्ता सिक्के उसकी संगीत के प्रति रूचि व शौर्य को प्रदर्शित करते है।
इसी प्रकार कुमारगुप्त के कार्तिकेय प्रकार के सिक्के उसके शैव अनुयायी होने की पुष्टि करते है।
सिक्कों से शासकों के राज्य विस्तार, उनके आर्थिक स्तर, धार्मिक विश्वास, कला, विदेशी व्यापार आदि की जानकारी मिलती है।
सबसे पहले प्राप्त होने वाले सिक्के चाँदी व ताँबे के हैं। इन पर केवल चित्र है। इन्हें पंचमार्क या आहत सिक्के कहा जाता है।
मौर्यों के बाद हिन्द यूनानी शासकों ने लेख युक्त मुद्रा प्रारम्भ की।
कुषाणों के समय स्वर्ण व ताम्र सिक्कें प्रचलन में आए गुप्त काल में स्वर्ण व रजत मुद्रा चलन में थी।
सिक्कों पर राजा का नाम, राज चिह्न, धर्म चिह्न व तिथि अंकित होती थी।
कुछ विशेष घटनाओं की जानकारी भी सिक्को से मिलती है।
समुद्र गुप्त के सिक्कों पर अश्व व यूप चिह्न है व अश्वमेध पराक्रम लिखा है, इससे समुद्र गुप्त द्वारा के अश्वमेघ यज्ञ किए जाने की जानकारी मिलती है। इसे एक सिक्के पर उसे वीणा बजाते हुये दिखाया है। बयाना (राजस्थान) व जोगलथम्बी (नासिक) से सिक्को का ढेर मिला है।
जोगलथम्बी के सिक्कों से शक सातवाहन संघर्ष की जानकारी मिलती है।
गौतमीपुत्र ने शकों के सिक्कों पर अपना नाम अंकित करवाकर सिक्के जारी किये। सिक्कों के साथ ही मुहरें भी प्रचलित थी। इन पर राजा, सामन्त, पदाधिकारीगण, व्यापारी या व्यक्ति विशेष के हस्ताक्षर व नाम होते थे।
बसाढ़ (प्राचीन वैशाली) से 274 मिट्टी की मुहरें मिली है।
सिक्कों से निम्न जानकारी प्राप्त होती है-
व्यापार व आर्थिक स्तर की जानकारी
शासकों की रुचियों का ज्ञान
तिथिक्रम निर्धारण
धार्मिक विश्वास की जानकारी
कला पर प्रकाश
साम्राज्य की सीमाओं का ज्ञान
नवीन तथ्यों का उद्घाटन
(4) स्मारक व भवन
पुरातात्विक स्रोतों (Archaeological Source) के अन्तर्गत भूमि पर एवं भूगर्भ में स्थित सभी अवशेष, स्तूप, चैत्य, विहार, मठ, मन्दिर, राजप्रसाद, दुर्ग व भवन सम्मिलित हैं।
इससे उस समय की कला, संस्कृति व राजनैतिक जीवन की जानकारी मिलती है।
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के अवशेषों से हमें वहां की सभ्यता व संस्कृति की जानकारी मिलती है।
देवगढ़ व भीतरीगांव मन्दिर से गुप्तकालीन धार्मिक व सांस्कृतिक अवस्था की जानकारी मिलती है।
स्मारकों से ही दक्षिणी-पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति के विस्तार की जानकारी मिलती है।
कम्बोडिया के अंगकोरवाट के स्मारक, जावा के बोरोबुदूर के मन्दिर भारत का अन्य देशों में औपनिवैशिक व सांस्कृतिक विस्तार की कहानी कहते है।
(5) मूर्तियां, शैलचित्र कला व अन्य कलाकृतियां
उत्खनन में अनेक स्थानों से विभिन्न मूर्तियाँ, टेराकोटा की कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं जो हमें उस समय के धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन की जानकारी देती हैं।
इसके अलावा चित्रकला मानव जीवन को प्रमाणिक रूप से अभिव्यक्त करने का मुख्य साधन है।
प्रागैतिहासिक काल में अनेक शैलाश्रय (प्रारम्भिक मानव का निवास स्थान) में तत्कालीन मानव द्वारा चित्रांकन किया गया है, जिसे शैलचित्र कला कहा जाता है।
इनमें जीवन के विभिन्न पक्षों की अभिव्यक्ति चित्रों के माध्यम से की गयी है। इनसे प्रारम्भिक मानव के सांस्कृतिक, सामाजिक, व धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है। दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, उत्तरी राजस्थान, शेखावाटी क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में ऐसे शैलचित्र मिले हैं।
मध्य प्रदेश का भीमबेटका, व पचमढ़ी भी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार अजन्ता की चित्रराशि, दुर्गों व महलों के भित्तिचित्र भी प्राचीन भारतीय इतिहास की अभिव्यक्ति करते हैं।