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Indian history
भारत भूखण्ड एक पूर्ण भौगोलिक इकाई रहा है। विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि समुद्र के उत्तर एवं बर्फीले प्रदेश के दक्षिण में जो प्रदेश है, उसका नाम भारतवर्ष है एवं हम सभी भारतीय उसकी संतति है। इसका अधिकांश भाग उष्णकटिबन्धीय वातावरण के क्षेत्र में आता है। उत्तर में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र है, जिसमें बल्ख, बदख्खाँ, जम्मू कश्मीर, कांगड़ा, टिहरी गढवाल कुमायूँ, नेपाल, सिक्कम, भूटान, असम व हिमालय की ऊँची पर्वत श्रेणियाँ सम्मिलित हैं। पश्चिम में हिन्दुकुश सफेदकोह, तुकेमान तथा किर्थर पर्वतश्रेणियों ने उत्तर से दक्षिण की विस्तृत होकर, इसे पश्चिमी क्षेत्र से पृथक किया है।
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भारतीय इतिहास (Indian history) की जानकारी के स्रोत

  • वस्तुतः इतिहास अन्तर्गत मानव का सम्पूर्ण अतीत समाहित रहता है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से सम्बन्धित हो ।
  • विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाज, राजनीति तथा धर्म व दर्शन आदि सभी क्षेत्रों में किये गये कार्य कलाप इतिहास की श्रेणी में आते हैं।
  • अतीत में मानव के जिन क्रिया-कलापों को तथ्यों के आधार पर हम पूर्ण विश्वास के साथ प्रमाणित कर सकें, उन्हें इतिहास में रख सकते हैं क्योंकि अतीत का प्रत्यक्षीकरण नहीं हो सकता, केवल उसके विषय में कुछ स्रोत के रूप में साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिनके आधार इतिहासकार इतिहास का निरूपण करता है।
  • वर्तमान में इतिहासकार अतीत की केवल घटनाओं की जानकारी देना ही उपयुक्त नहीं समझते बल्कि उसके कारणों की भी विस्तृत जाँच पड़ताल करते हैं। इसके मूल में मानव के आन्तरिक मनोगत भूमिका होती है और इतिहासकार का मानव संस्कृति का अध्ययन करना मुख्य उद्देश्य होता है।
  • अतीत की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए इतिहासकार सभी प्रकार के साधनों को उपयोग करता है, इन साधनों को स्रोत, साक्ष्य और प्रमाण कहा जाता है।
  • इन्हीं के आधार पर वह विश्वसनीय विवरण तैयार करता है। इसलिए कहा जाता है कि इतिहासकार इतिहास की पुनः रचना करता है।
  • इतिहास की उन्हीं घटनाओं को तथ्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है जो साक्ष्य एवं प्रमाणों से सिद्ध हों। इसलिए इतिहासकार का मूल मंत्र है – ‘नामूलं लिख्यते किंचित’ (अर्थात् बिना मूल या आधार के कुछ नहीं लिखना चाहिए)।
भारतीय इतिहास की जानकारी के स्रोतों को मुख्य रुप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :- 

1. साहित्यिक स्रोत |

2. पुरातात्विक व पुरालेखीय स्रोत |

साहित्यिक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साहित्यिक स्रोतों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

(अ) धार्मिक साहित्य – ब्राह्मण साहित्य, बौद्ध सहित्य, जैन साहित्य

(ब) धर्मेतर साहित्य – ऐतिहासिक ग्रन्थ, विशुद्ध साहित्यिक ग्रन्थ, क्षेत्रीय साहित्य, विदेशी विवरण

(स) वंशावलियाँ – इतिहास के स्रोत के रूप में

(अ) धार्मिक साहित्य

ब्राह्मण साहित्य

  • ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद है।
  • वेदों के द्वारा हमें सम्पूर्ण आर्य सभ्यता व संस्कृति की जानकारी मिलती है।
  • वेद ज्ञान के समृद्ध भण्डार हैं। वेदों की संख्या चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद ।
  • सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद है जिसमें 10 मण्डल व 1028 सूक्त हैं।
  • प्रत्येक वेद के चार भाग हैं – संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् ।
  • वेदों की व्याख्या संहिताओं में की गई है।
  • ऋग्वेद छन्दों में रचा गया है।
  • यजुर्वेद में यज्ञों से सम्बन्धित विवरण मिलता है।
  • सामवेद में आर्यों द्वारा गायी जाने वाली सामग्री है।
  • अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी।
  • इसमें विषय भी विविध है।
  • इसमें ब्रह्मज्ञान, धर्म समाज–निष्ठा, औषधि प्रयोग, शत्रुओं का दमन, रोग निवारण, तन्त्र मन्त्र, आदि विषय सम्मिलित है।

ब्राह्मण साहित्य की अन्य जानकारी 

  • इसके उपरान्त यज्ञ और कर्मकाण्डों पर आधारित जो रचा गया, वे ‘ब्राह्मण ग्रन्थ’ कहलाते हैं।
  • आरण्यक ग्रन्थों में जिनकी रचना ऋषियों द्वारा वनों में की गई है, दार्शनिक विषयों का विवरण मिलता है, जबकि उपनिषदों में गूढ़ विषयों एवं नैतिक आचरण नियमों की जानकारी मिलती है।
  • वैदिक साहित्य को ठीक तरह से समझने हेतु वेदांग साहित्य की रचना की गई जिसके छह भाग हैं – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द एवं ज्योतिष ।
  • आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद व शिल्पवेद चार उपवेद भी हैं, जिनसे चिकित्सा, वास्तुकला, संगीत, सैन्य विज्ञान आदि की जानकारी मिलती है।
  • वेदों के उपरान्त विभिन्न ऋषियों द्वारा स्मृति ग्रन्थों की रचना की गई।
  • इनमें मनुस्मृति व याज्ञवल्क्य स्मृति प्रमुख है।
  • रामायण व महाभारत महाकाव्य भारतीय इतिहास की जानकारी के अथाह कोष है। इनसे समाज, धर्म व राजनीति की ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
  • हमारे पुराण प्राचीन काल के इतिहास ग्रन्थ हैं। इनकी संख्या 18 है।
  • इनमें मार्कण्डेय, ब्रह्माण्ड, वायु, विष्णु, भागवत एवं मत्स्य प्रमुख हैं।
  • मत्स्य सर्वाधिक प्राचीन है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की सर्वाधिक जानकारी इन्हीं से मिलती है।
  • इनके पाँच प्रमुख विषय है – मनवन्तर, वंश, वंशानुचरित सर्ग, प्रतिसर्ग,

बौद्ध साहित्य 

  • प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में बौद्ध साहित्य की प्रमुख भूमिका रही है।
  • बौद्ध साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्थ त्रिपिटक है। ये तीन हैं- सुत्तपिटक, विनय पिटक व अभिधम्म पिटक। इसलिए इनको त्रिपिटक कहा जाता है। इनमें बौद्ध धर्म के नियम-आचरण संग्रहीत हैं।
  • बौद्ध ग्रन्थों में दूसरा महत्वपूर्ण योगदान जातक ग्रन्थों का है। इनमें गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाओं की तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक पक्षों की जानकारी मिलती है। इनकी संख्या 549 है। पाली भाषा के अन्य बौद्ध ग्रन्थों में मिलिन्दपन्हो, दीपवंश व महावंश है।
  • मिलिन्दपन्हों में यूनानी आक्रमणकारी मीनेण्डर व बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य वार्ता का विवरण है। दीपवंश व महावंश में सिंहलद्वीप के इतिहास का वर्णन है।
  • पाली भाषा के अलावा संस्कृत भाषा में भी बौद्ध ग्रन्थ लिखे गए हैं।
  • महावस्तु ग्रन्थ गौतम बुद्ध के जीवन चरित्र पर आधारित ग्रन्थ है, जबकि ललितविस्तार में लेखक ने गौतम बुद्ध को दैवीय शक्ति के रूप में निरूपित किया है और उनके अद्भुत  कार्यों से सम्बन्धित जीवन वृत्त अंकित किया है।
  • मंजुश्री मूलकल्प, अश्वघोष का बुद्धचरित्र एवं सौंदरानन्द काव्य से भी ऐतिहासिक जानकारी मिलती है। इनमें गौतम बुद्ध के जीवन चरित्र एवं शिक्षाओं की जानकारी मिलती है।
  • बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में सत्कर्म एवं वीरोचित कार्यों का वर्णन है।
  • मध्य व पश्चिमी एशिया, तिब्बत, चीन, जापान, ब्रह्मा, श्रीलंका आदि देशों में भारतीय बौद्ध ग्रन्थों का अनुवाद किया गया, जिनमें प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री निहित है।

जैन साहित्य 

  • बौद्ध साहित्य की तरह ही जैन साहित्य में भी पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है।
  • जैन साहित्य में आगम सबसे प्रमुख हैं। इसके अन्तर्गत 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6. छेद सूत्र, 1 नन्दिसूत्र, 1 अनुयोगद्वार व 4 मूल सूत्र शामिल है।
  • इसकी रचना चौथी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी के लम्बे समय में विभिन्न धार्मिक संगितियों व व्यक्तियों के माध्यम से हुई थी।
  • जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया है। अन्य जैन ग्रन्थों में कथाकोष, परिशिष्टपर्वन, भद्रबाहुचरित, कल्पसूत्र, भगवती सूत्र आदि प्रमुख है, जिनसे ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है। (आचरांगसूत्र में जैन साधुओं के आचार व्यवहार से सम्बन्धित नियमों का संकलन है। परिशिष्टपर्वन में तत्कालीन राजाओं और जैन मुनियों के सम्बन्धों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • भद्रबाहुचरित में जैन मुनि भद्रबाहु के साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के अन्तिम समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है।

(ब) धर्मेत्तर साहित्य –

इस श्रेणी में प्राचीन भारत में धर्म के अतिरिक्त अन्य विषयों पर लिखा गया साहित्य आता है। इसमें ऐतिहासिक, अर्द्ध ऐतिहासिक, विशुद्ध साहित्यिक ग्रन्थ, नाटक कथा कोष, काव्य आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं।

(i) ऐतिहासिक ग्रन्थ 

  • कल्हण की राजतरंगिनी विशुद्ध रूप से ऐतिहासिक ग्रन्थ है, जिसकी रचना 1150 ई. में की गई थी।
  • इसमें प्राचीन समय से बारहवीं शताब्दी तक का कश्मीर का इतिहास है।
  • अन्य प्रमुख ग्रन्थ ऐतिहासिक आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य या कौटिल्य का अर्थशास्त्र है।
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र में तत्कालीन राजप्रबंध, अर्थव्यवस्था, सामाजिक व धार्मिक जीवन की विस्तृत जानकारी मिलती है।
  • कौटिल्य ने इतिहास के अन्तर्गत पुराण इतिवृत्त, आख्यान, उदाहरण, धर्मशास्त्र, एवं अर्थशास्त्र को सम्मिलित किया है।

इन ग्रन्थों के अलावा जीवन चरित सम्बन्धी ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं जिनसे उन शासकों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है 

1. बाणभट्ट   हर्षचरित
2. वाक्पति  गौढवहो
3. विल्हण  विक्रमांकदेव चरित
4. जयसिंह   कुमारपाल चरित
6. नयचन्द   हम्मीर महाकाव्य
7.  पद्मगुप्त   नवसहसांक चरित
8. बल्लाल  भोज चरित

 

(ii) विशुद्ध साहित्यिक ग्रन्थ –

  • विशुद्ध साहित्यिक ग्रन्थों में अनेक नाटक, व्याकरण ग्रन्थ, टीका, काव्य, कथा साहित्य एवं कोष की रचना की गई, जिनसे उस समय के शासकों, सामाजिक व आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है।
  • पाणिनी का अष्टाध्यायी, पतंजलि का महाभाष्य, गार्गीसंहिता, कालीदास का मालविकाग्निमित्र, विशाखादत्त का मुद्राराक्षस, शूद्रक का मृच्छकटिकम्, विज्ञानेश्वर की मिताक्षरा व कामन्दक का नीतिसार ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं।
  • कथा साहित्य एवं कोष साहित्य की दृष्टि से विष्णु शर्मा का पंचतंत्र, गुणाढ्य की वृहत् कथा क्षेमेन्द्र की वृहतकथामंजरी, सोमदेव की कथासरित्सागर, अमरसिंह का अमरकोष आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं, जिनसे तत्कालीन समाज की जानकारी मिलती है। ये ग्रन्थ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

(iii) क्षेत्रीय साहित्य –

  • क्षेत्रीय भाषाओं के ग्रन्थों में भी प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिलती है।
  • प्राचीन तमिल साहित्य संगम साहित्य कहलाता है। इस साहित्य के प्रणेता अगस्त्य ऋषि थे।
  • तेलगू ग्रन्थ धूर्जटि द्वारा लिखित कृष्णदेवराय विजयुम विजय नगर राज्य के शासक कृष्णदेवराय की उपलब्धियों की जानकारी देता है।
  • राजस्थानी भाषा के ग्रन्थों में चन्दबरदाई का पृथ्वीराज रासो, पद्मनाभ का कान्हड़दे प्रबन्ध, बीठू सूजा का राव जैतसी रो छन्द, सूर्यमल मिश्रण का वंश भास्कर, नैणसी का नैणसी की ख्यात, बांकीदास की ख्यात आदि प्रमुख हैं।

(iv) विदेशी विवरण (साहित्य)

  • प्राचीन काल से ही भारत की सांस्कृतिक एवं आर्थिक उपलब्धियां विश्व को आकर्षित करती रही हैं।
  • भारत के व्यापारिक सम्बन्ध विश्व के देशों से थे।
  • धर्म व दर्शन का ज्ञान प्राप्त करने व अध्ययन हेतु लोग विदेशों से यहाँ आते थे।
  • इसीलिये विदेशी लेखक भी भारत से प्रभावित हुए और उन्होंने भारत के म्बन्ध में पर्याप्त विवरण दिया है लेकिन इस विवरण का सावधानी पूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता है।
  • यूनानी साहित्य यूनानी लेखकों में टेसियस, हेरोडोटस,निर्याकस, एरिस्टोब्युलस, आनेक्रिट्स, स्ट्रेबो, एरियन एवं स्काई लेक्स प्रमुख हैं।
  • सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा लिखित ‘इंडिका’ है।
  • यूनानी विवरणों से चन्द्र गुप्त मौर्य के प्रशासन, समाज एवं आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।
  • यूनानी साहित्य में टॉलमी का भूगोल, प्लिनी दी एल्डर की नेचुरल हिस्ट्री, एरिस्टोब्यूलस की ‘हिस्ट्री ऑफ दी वार स्ट्रेबो का भूगोल आदि विशेष उल्लेखनीय है। पेरीप्लस ऑफ दी एरिथ्रीयन सी’ पुस्तक में बन्दरगाहों व व्यापार का विस्तृत विवरण है।

चीनी विवरण

  • चीनी यात्रियों में फाह्यान, सुंगयुन, हवनसांग एवं इत्सिंग का वृतान्त महत्वपूर्ण है।
  • फाह्यान गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त II के समय (399-414 ई.) भारत आया था।
  • ह्वेनसांग को ‘यात्रियों का राजकुमार’ कहा जाता है।
  • उसने नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की।
  • वह हर्षवर्द्धन के राज्य काल में 629 ई. से 644 ई. में भारत आया था और उसने अपनी पुस्तक सीयूकी में भारत के समकालीन इतिहास का वर्णन किया है।
  • इस्सिग ने सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 672 से 688 ई. तक भारत भ्रमण किया। इससे नालन्दा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय के साथ ही भारतीय संस्कृति व समाज की भी जानकारी मिलती है।

तिब्बती वृतान्त-

  • तिब्बती वृतान्त में तारानाथ द्वारा रचित कंग्यूर व तंग्यूर ग्रन्थों को उपयोगी माना गया है।
  • अरबी यात्री और भूगोलवेत्ताओं ने भी भारत के सम्बन्ध में जानकारी दी है।
  • मसूदी ने अपनी पुस्तक ‘मिडास ऑफ गोल्ड’ में भारत का विवरण दिया है और लिखा है कि भारत का राज्य स्थल व समुद्र दोनों पर था।
  • सिन्ध के इतिहास ‘चचनामा’ में तथा सुलेमान नवी की पुस्तक ‘सिलसिलात-उल-तवारीख’ में पाल – प्रतिहार शासको के बारे में लिखा है।
  • अरबी लेखकों में अल्बेरूनी (तारिख ए हिन्द) सबसे महत्वपूर्ण है, जिसने संस्कृत भाषा सीखी व मूल स्रोतों का अध्ययन करके अपनी पुस्तक तारीख-उल-हिन्द में भारतीय समाज व संस्कृति के बारे में लिखा है।

(स) इतिहास के स्रोत के रूप में वंशावलियां

  • भारतीय इतिहास में वंश लेखन परम्परा का स्थान महत्वपूर्ण रहा है।
  • वंशावली लेखन परम्परा व्यक्ति के इतिहास को शुद्ध रूप से सहेज कर रखने की प्रणाली है।
  • यह एक ऐसी परम्परा है जिसमें वंशावली लेखक हर जाति-वर्ग के घर-घर जाकर प्रमुख लोगों की उपस्थिति में संक्षेप में सृष्टि रचना से लेकर उसके पूर्वजों की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक घटनाओं का वर्णन करते हुये उस व्यक्ति का वंश क्रम हस्तलिखित पोथियों में अंकित करता है।
  • वंशावलियों के अध्ययन से ही हमें जानकारी मिलती है कि हमारे पूर्वज कौन थे ?
  • वंशावली लेखकों में मुख्य रूप से बड़वा, जागा, रावजी एवं भाट, तीर्थ पुरोहित, पण्डे, बारोट आदि प्रमुख है।
  • ऐतिहासिक स्रोत की दृष्टि से वंशावलियाँ निम्नांकित बिन्दुओं की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं  :-
  • (1) पुरोहितों द्वारा निर्मित वंशावलियाँ या बहियाँ प्रामाणिक दस्तावेजी न्यायिक साक्ष्य के रूप में मान्य है।
  • पारिवारिक सम्बन्धों के विषय में कागज इत्यादि पर वर्णन किया जाता है इसका उद्देश्य उनके सदैव रिकार्ड के रूप में रखने का होता है।
  • वर्णन में अक्षरों के साथ ही चिह्नों का भी प्रयोग करते हैं।
  • मौखिक साक्ष्य से लिखित साक्ष्य अधिक प्रभाव पूर्ण होता है।
  • निश्चित रूप से बहियाँ या वंशावलियाँ, एक न्यायिक दस्तावेज है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के वंशावलियों बहियों इत्यादि को सुसंगत न्यायिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया गया है।
  • जगदीश प्रसाद बनाम सरवन कुमार AIR 2003 P & H मामले में न्यायालय ने पण्डों की बहियों में की गई प्रविष्टियों को साक्ष्य के रूप में ग्राहय माना।
  • ऐसे कई मामले हैं जिसमें वंशावलियों व बहियों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया है।
वंशावली लेखन संबादित
  • (2) वंशावली लेखको को लोक इतिहासकार भी कह सकते हैं।
  • पुरातन एवं मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन में वंशावलियाँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत रही हैं।
  • हमारे पुरातन ग्रन्थ पुराणों में जो इतिहास उपलब्ध है उसमें वंशावलियों का महत्वपूर्ण आधार रहा है।
  • कई ऐतिहासिक घटनाओं के प्रमाण वंशावलियों से मिलते हैं।
  • (3) वंशावलियों में प्रत्येक जाति व प्रत्येक व्यक्ति के इतिहास का लेखन हुआ है।
  • उनके वंशानुक्रम की जानकारी हमें वंशावलियों से मिलती है।
  • वंश लेखकों ने जातीय सामाजिक इतिहास की भी जानकारी दी है।
  • समाज जिन महापुरूषों को अपना आदर्श मानता है, उनकी जानकारी भी हमें वंशावलियों से प्राप्त होती है।
  • वंशावली लेखन परम्परा की शुरूआत वैदिक ऋषियों द्वारा समाज को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित करने की दृष्टि से की गई थी, जो हजारों वर्षों से आज भी अनवरत् जारी है।
  • वंशावली परम्परा के हस्तलिखित ग्रन्थों से अनेक ऐतिहासिक पुरुषों का परिचय प्राप्त होता है।
  • (4) समाज के आर्थिक जीवन के विकास लोगों के व्यवसाय आदि का उल्लेख भी वंश लेखकों द्वारा किया गया है।
  • वंशावली लेखक एक निश्चित समय तक व्यक्ति के आवास पर ही निवास करके इसका लेखन करता था। इसलिए उसमें यथार्थता दिखाई पड़ती है।
  • (5) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परम्परा, संस्कृति, मूल निवास, विस्तार, वंश, कुलधर्म, कुलाचार, गोत्र व पूर्वजों के नाम प्राप्त करने का सर्वाधिक विश्वनीय स्रोत वंशावलियाँ ही हैं।
  • (6) वंशावलियों द्वारा धर्मान्तरित हिन्दुओं को अपनी जड़ों का परिचय देकर आपसी विद्वेष को कम किया जा सकता है।

इतिहास के स्रोत 

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