Major folk and folk Goddesses of Rajasthan: राजस्थान के प्रमुख लोक देवता व लोक देवियां के बारे में संपूर्ण महत्वपूर्ण जानकारी यहां देखें

राजस्थान की कला संस्कृति में आज हम एक नया अध्याय राजस्थान के प्रमुख लोक देवता व लोक देवियां (Rajasthan ke LokDevta or deviya) के बारे में जानने वाले है यहाँ सभी एक्साम्स और आप के जनरल नॉलेज के लिए अति उपयोगी है। हर प्रतियोगिता परीक्षा में यहाँ से एक नया सवाल बनता है उन सभी का यहाँ उल्लेख किया गया है। मारवाड़ अँचल में पाँचों लोकदेवताओं- पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, गोगाजी एंव मांगलिया मेहा जी को पंच पीर माना गया है।

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राजस्थान के प्रमुख लोक देवता व लोक देवियां

गौ रक्षक, प्लेग रक्षक व ऊँटों के देवता पाबूजी राठौड़ 

  • जन्म: 13वीं शताब्दी (वि.सं. 1296) में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलूमंड में |
  • अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री सुप्यारदे से विवाह के समय जीन्दराव खींची से देवल चारणी की गायें छुड़ाते हुए वीर गति को प्राप्त।
  • ये राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे।
  • गौ रक्षक, प्लेग रक्षक व ऊँटों के देवता के रूप में विशेष मान्यता लक्ष्मण के अवतार ।
  • कोलृमंड (जोधपुर) में प्रमुख मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है।
  • ऊँटों की पालक राइका (रेबारी )जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है।
  • पाबूजी से संबंधित गाथा गीत ‘पाबूजी के पवाड़े’ माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेवारी जाति द्वारा गाये जाते हैं।
  • ‘पाबूजी की फड़’ नायक जाति के भोपों द्वारा ‘रावणहत्था’ वाद्य के साथ बाँची जाती है।
  • ये केसरकालमी घोड़ी एवं बांयी ओर झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध हैं। बोधचिह्न भाला।

जाहर पीर गोगाजी चौहान ( गोगा पीर ) 

  • जन्म : ददरेवा (चुरू में) 11वीं सदी में जेवरसिंह बाछल के घर में इन्हें जाहर पीर भी कहते हैं।
  • गोगाजी ने गौ-रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर किए।
  • किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की ‘गोगा राखड़ी’ हल और हाली, के बाँधता है।
  • गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मेड़ी तथा समाधि स्थल ‘गोगा मेड़ी’ को ‘धुरमेड़ी’ भी कहते हैं।
  • गोगामेड़ी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है।
  • सर्पों के देवता के रूप में पूज्य गोगाजी के थान ‘खेजड़ी वृक्ष’ के नीचे होते हैं जहाँ मूर्तिस्वरूप पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है।
  • गोगाजी को हिन्दू एवं मुसलमान दोनों पूजते हैं।
  • इनकी सवारी ‘नीली घोड़ी’ थी।

रूणीचा रा धणी बाबा रामदेव जी 

  • ‘रामसा पीर’, ‘रूणीचा रा धणी’ व ‘बाबा रामदेव’ नाम से प्रसिद्ध लोकदेवता।
  • जन्म : भादवा सुदी 2 संवत् 1462 (1405 ई.) को उण्डकश्मीर, शिव तहसील (बाड़मेर) में तँवर वंशीय ठाकुर अजमालजी के यहाँ माता मैणादे की कोख से।
  • जीवित समाधि : रूणेचा में भादवा सुदी एकादशी संवत् 1515 (सन् 1458) को ।
  • कामड़िया पंथ के प्रवर्तक कृष्ण के अवतार।
  • इनके गुरु बालीनाथ थे। रामदेवजी के मंदिरों को ‘देवरा’ कहते हैं।
  • रामदेवरा ( रूणीचा, जैसलमेर) में रामदेवजी का विशाल मंदिर है जहाँ भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है जिसकी मुख्य विशेषता साम्प्रदायिक सद्भाव व तेरहताली नृत्य है।
  • अन्य मंदिर: जोधपुर में मसूरिया पहाड़ी पर विरोटिया एवं सुरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़)।
    ये अर्जुन के वंशज माने जाते हैं।
  • विवाह-अमरकोट के सोढा राजपूत दलैसिंह की पुत्री निहालदे से।
  • रामदेवजी ने समाज में व्याप्त छुआ-छूत, ऊँच-नीच को दूर कर समरसता स्थापित की।
  • रामदेवजी कवि भी थे। इनकी रचित ‘चौबीस बाणियाँ’ प्रसिद्ध है।

अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता तेजाजी 

  • खड़नाल (नागौर) के नागवंशीयं जाट।
  • अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता जन्म 1073 ई. में।
  • लाछा गुजरी की गायें मेरों से छुड़ाने हेतु प्राणोत्सर्ग सर्प व कुत्ते काटे प्राणी का इलाज।
  • मुख्य थान- खड़नाल (नागौर), अजमेर के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया व भांवता।
  • परबतसर (नागौर) व अन्य थानों पर भाद्रपद शुक्ला दशमी (तेजा दशमी) को मेला (पशु मेला) भी भरता है।
  • सुरसुरा में तेजाजी की जागीर्ण निकाल जाती है।
  • जाट जाति में इनकी अधिक मान्यता है।
  • इनके भोपे को ‘घोड़ला’ कहते हैं।
  • इनकी घोड़ी लीलण थी |

सवाईभोज के पुत्र देवनारायणजी 

  • मूल देवरा : गोठां दड़ावत (आसींद भीलवाड़ा)
  • समाधि: देवमाली (ब्यावर) ।
  • ये सवाईभोज के पुत्र थे।
  • गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं।
  • इनकी फड़ गूजर भोपे बाँचते हैं।
  • यह फड़ राज्य की सबसे बड़ी फड़ है।
  • इसे जंतर वाद्य के साथ वाचते हैं।
  • इस पड़ पर डाक टिकट जारी किया जा चुका है।
  • देवनारायणजी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है।
  • जन्म : आसींद में सन् 1243 ई. बागड़ावत कुल में सवाई भोज-सेदू के घर में इनकी पत्नी पीपलदे थी।
  • इनके प्रमुख देवरे देवमाली (ल्यावर), देवधाम जोधपुरिया (निवाई) एवं देव डूंगरी पहाड़ी (चित्तौड़) में है।

शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता हड़बू जी 

  • इनके गुरु बालीनाथ जी थे।
  •  रामदेवजी के समाज सुधार कार्य के लिए आजीवन कार्य किया।
  • बेंगटी (फ्लॉदी) में हड़बू जी का मुख्य पूजा स्थल है एवं इनके पुजारी साँखला राजपूत होते हैं।
  • ये भूडोल (नागौर) के मूल निवासी थे। ये शकुन शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे।

मारवाड़ के पंच पीरों में एक मेहाजी मांगलिया 

  • बापणी (जोधपुर) में इनका मंदिर है।
  • भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं।
  • किरड़ काबरा घोड़ा इनका प्रिय घोड़ा था।
  • मारवाड़ के पंच पीरों में एक ये भी थे।

चार हाथ वाले लोक देवता कल्लाजी 

  • जन्म: मारवाड़ के सामियाना गाँव में प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
  • चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए ये वीरगति को प्राप्त हुए।
  • युद्धभूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वीरता के कारण इनकी ख्याति चार हाथ वाले लोक देवता के रूप में हुई।
  • ‘रनेला’ इस वीर का सिद्ध पीठ है।
  • भूत-पिशाच ग्रस्त लोग व रोगी पशुओं का इलाज।
  • कल्लाजी को शेषनाग का अवतार माना जाता है।
  • सामलिया (हूँगरपुर) में इनकी प्रतिमा है।

मारवाड़ में भविष्यदृष्ट एवं चमत्कारी मल्लीनाथजी 

  • जन्म : 1358 ई. में मारवाड़ में ये भविष्यदृष्ट एवं चमत्कारी पुरुष थे।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर जहाँ हर वर्ष चैत्र कृष्णा एकादशी से 15 दिन का मेला भरता है जिसमें बड़ी मात्रा में पशु मेला भी भरता है।
  • ये एक भविष्यदृष्टा एवं चमत्कारी पुरुष थे।
  • इनकी राणी रुपादे का मंदिर भी पास के गाँव मालाजाल में है।
  • मालाणी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा बताया जाता है।

जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी तल्लीनाथजी 

  • जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी लोकदेवता।
  • इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ था।
  • इनके गुरु जालन्धरनाथ थे।
  • ये शेरगढ़ ठिकाने के शासक थे।
  • जालौर के पाँचोटा गाँव के पास पाँचोटा पहाड़ी पर इनका मंदिर है।

कष्ट निवारक देवबाबा 

  • पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान।
  • गूजरों व ग्वालों के पालनहार व कष्ट निवारक नगला जहाज (भरतपुर) में मंदिर है।
  • जहाँ भाद्रपद शुक्ला पंचमी और चैत्र
  • शुक्ला पंचमी को मेला भरता है।

 बरसात के देवता मामादेव 

  • विशिष्ट लोक देवता जिनकी मिट्टी पत्थर की मूर्तियों नहीं होती बल्कि गाँव के बाहर प्रतिष्ठित लकड़ी का एक विशिष्ट व कलात्मक तोरण होता है।
  • ये गाँव के रक्षक व बरसात के देवता हैं।

धनी लोगों को लुटने वाले डूंगजी-जवाहरजी

  • शेखावाटी क्षेत्र के लोक देवता।
  • ये धनी लोगों को लुटकर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदों में बाँटते थे।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

गोगाजी के पुत्र केसरिया कुंवरजी 

  • गोगाजी के पुत्र जो लोकदेवता के रूप में पूज्य हो गये।
  • इनका भोपा सर्पदंश के रोगी का जहर मुँह से चूसकर निकाल देता है।

भूमि रक्षक देवता भोमियाजी

  • भोमियाजी का जन्म चांदनी 14 को हुआ था।
  • ये गांव गांव में भूमि रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते है |

जाखड़ समाज के कुल देवता वीर बग्गाजी 

  • बीकानेर जिले में जन्मे बग्गाजी ने मुस्लिम लुटैरों से गायों की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
  • ‘जाखड़ समाज’ इन्हें कुल देवता मानता है।

लुटेरों से अनुयायियों की रक्षार्थ वीर फत्ताजी 

  • साथै गाँव (जालौर) के फत्ता जी ने लुटेरों से अनुयायियों की रक्षार्थ अपना बलिदान दिया।
  • साथू गाँव में इनका मंदिर है जहाँ भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

पावृजी के भतीजे रुपनाथजी

  • ये पावृजी के भतीजे थे।
  • इन्होंने अपने पिता एवं चाचा पाबूजी की मृत्यु का बदला लेने हेतु जींदराव खींची की हत्या कर दी।
  • कोलूमण्ड (जोधपुर) एवं सिंभूधड़ा (बीकानेर) में इनके थान है।
  • हिमाचल प्रदेश में इन्हें बालकनाथ के रूप में पूजते हैं।


‘चूहों वाली देवी’ करणी माता 

  • बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी।
  • ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से विख्यात ईष्ट देवी-तेमड़ाराय।
  • जन्म सुआप गाँव के चारण परिवार में मंदिर : देशनोक (बीकानेर)।
  • राव बीका ने इन्हीं के आशीर्वाद से जांगल क्षेत्र में राठौड़ वंश का शासन स्थापित किया था।
  • करणी जी के काबे : इनके मंदिर के चूहे।
  • यहाँ सफेद चूहे के दर्शन करणी जी के दर्शन माने जाते हैं।

 हर्ष की बहन जीणमाता 

  • चौहान वंश की आराध्य देवी।
  • ये धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहन थी।
  • मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा है।
  • यहाँ चैत्र एवं आश्विन माह की शुक्ला नवमी को मेला भरता है।
  • मंदिर का निर्माण रैवासा (सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा।

कैलादेवी आराधना में लांगुरिया गीत

  • करौली के यदुवंश (यादव वंश) की कुल देवी।
  • इनकी आराधना में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं।
  • मंदिर: त्रिकूट पर्वत की घाटी (करौली) में।
  • यहाँ नवरात्रा में विशाल लक्खी मेला भरता है।

शिलामाता (अन्नपूर्णा देवी)

  • शिला देवी जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी हैं।
  • इनका मंदिर आमेर दुर्ग में है।
  • शिलामाता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर में निर्मित्त है।
  • महाराजा मानसिंह पं. बंगाल के राजा केदार से ही सन् 1604 में मूर्ति लाए थे।

 कछवाहा राजवंश की कुलदेवी जमुवाय माता 

  • ढूंढाड़ के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी।
  • इनका मंदिर जमुवारामगढ़, जयपुर में है।

रामदेवजी की शिष्या आइजीमाता

  • सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी।
  • इनका मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में है।
  • मंदिर ‘दरगाह’ व थान ‘बडेर’ कहा जाता है।
  • ये रामदेवजी की शिष्या थी।
  • इन्हें मानी देवी (नवदुर्गा) का अवतार माना जाता है।

‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय राणी सती 

  • वास्तविक नाम ‘नारायणी’।
  • ‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय। ये
  • पति की मृत्यु पर सती हुई थी।
  • झुंझुनूँ में राणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।

भाटी राजवंश की कुलदेवी आवड़माता 

  • जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी।
  • इनका मंदिर तेमड़ी पर्वत (जैसलमेर) पर है।
  • सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
  • इन्हें तेमड़ाताई भी कहते हैं।

चेचक निवारक देवी शीतलामाता 

  • बच्चों की संरक्षिका देवी।
  • जांटी (खेजड़ी) को शीतला माता मानकर पूजा की जाती है।
  • चाकसू (जयपुर) मंदिर जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था।
  • चैत्र कृष्णा अष्टमी को वार्षिक पूजा व मंदिर में विशाल मेला भरता है।
  • इस दिन लोग बास्योड़ा मनाते हैं।
  • इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है तथा पुजारी कुम्हार होते है।
  • इनकी सवारी ‘गधा’ है।
  • चेचक निवारक देवी।
  • बाँझ स्त्रियाँ संतान प्राप्ति हेतु इनकी पूजा करती हैं।

दस सिर और चौपन हाथ सुगालीमाता 

  • आउवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी।
  • इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ है।

पीठ की ही पूजा ब्राह्मणी माता 

  • बारौँ जिले के अन्ता कस्बे से 20 किमी. दूर सोरसन ग्राम के पास ब्राह्मणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर है।
  • यहाँ देवी की पीठ की ही पूजा होती है अग्र भाग की नहीं।
  • यहाँ माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है।

 महत्वपूर्ण बिंदु

  1. नावा- लोक देवी-देवताओं के भक्त, शृद्धालु, पुजारी, भोपे आदि लोग अपने आराध्यदेव की सोने, चाँदी, पीतल, ताँबे आदि धातुओं की बनी छोटी सी प्रतिकृति गले में बाँधते हैं। उसे हो ‘नावा’ कहते हैं।
  2. पर्चा देना- अलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना पर्चा देना (शक्ति का परिचय) कहलाता है
  3. चिरजा- ये देवी की पूजा, आराधना के पद, गीत या मंत्र हैं, जो विशेषकर देवी के रतजगों (रात्रि जागरणों) के समय महिलाओं द्वारा गाये जाते हैं।
  4. देवरे- राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में चबूतरेनुमा बने हुए लोक देवों के पूजास्थल
  5. तेजाजी, गोगाजी व कल्लाजी सर्पदंश के लिए पूजे जाते है।

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