Rajasthan Ke Lokanaaty : राजस्थान के प्रमुख लोकनाट्य प्रतियोगी परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण लोकनाट्य सम्पूर्ण जानकारी जाने यह

हम चर्चा कर रहे हैं राजस्थान की कला और संस्कृति पर राजस्थान की कला संस्कृति के अंतर्गत एक छोटा सा अध्याय जिस पर चर्चा करते हैं राजस्थान के प्रमुख लोक नाट्य (Rajasthan Ke Lokanaaty) इस पर चर्चा करते हैं नाट्य होता क्या है नाट्य का अर्थ होता है नाटक। नाटक सही अर्थ नहीं होता है लेकिन आपको इतना ध्यान रखना है कि रंगमंच के ऊपर लोगों के मनोरंजन के लिए जो कलाए प्रस्तुत की जाती है उसे लोकनाट्य कहते हैं यहाँ कई प्रकार की हो सकती है जैसे बहरूपिया, तमाशा, नौटंकी, खयाल, दंगल यानी आपको मनोरंजन के लिए जो भी माध्यम अपनाए जाते हैं उस सब को लोकनाट्य कहते हैं तो हम एक-एक नाट्य को विस्तार से यहां चर्चा की गई है.

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Rajasthan ke Pramukh Lokanaaty
Rajasthan ke Lokanaaty

राजस्थान के नाट्यकला (Rajasthan Ke Lokanaaty)

  • राजस्थान में आदिवासी भीलों संस्कृति में लोकनाट्यों की परम्परा रही है जिसने राज्य में लोकनाट्यों के विकास में योगदान दिया है। तुर्रा कलगी यह राजस्थान में सबसे प्राचीन लोकनाट्यों में से एक हैं। इसकी रचना मेवाड़ के दो पीर सन्तों शाहअली और तुक्कनगीर ने की थी।
  • सामंतवादी काल के दौरान लोकनाट्यों को राजकीय संरक्षण मिला जिससे वे विकसित हुए।
  • लोकनाट्य दरबारोन्मुखी थे इसलिए आम जनता तक इसकी पहुँच नहीं हो पाई। इन लोकनाट्यों का प्रदर्शन केवल कुछ पेशेवर निम्न जातियों द्वारा किया जाता था अतः यह केवल निम्न पेशेवर जातियों तक ही सीमित हो गई। राजस्थान में लोकनाट्यों को उनके विविध स्वरूपों के आधार पर तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-
  • पर्वतीय क्षेत्र इस क्षेत्र के अन्तर्गत डूंगरपुर, उदयपुर, कोटा, झालावाड़ और सिरोही के क्षेत्र आते हैं।
  • रेगिस्तानी क्षेत्र इस क्षेत्र में जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर और जोधपुर के क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • पूर्वाचल क्षेत्र इसमें जयपुर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा शेखावटी क्षेत्र शामिल हैं।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में मीणों, भीलों, सहरियों, बणजारों तथा गरासियों आदि के द्वारा सामुदायिक मनोरंजन की संस्कृति का विकास किया गया।
  • राजस्थान के मरूस्थलीय क्षेत्रों में सरगरा, नट, भाट, भाण्ड आदि पेशेवर जनजातियों द्वारा जीविका के लिए स्वांग, लोकनाट्य आदि को मनोरंजन के रूप में विकसित किया गया।
  • भाण्ड (प्राचीन लोकनाट्य) के माध्यम से यह लोगों का मनोरंजन करते थे।
  • राजस्थान का पूर्वांचल क्षेत्र (शेखावाटी) ख्याल लोकनाट्य (Rajasthan Ke Lokanaaty) की प्रचलित शैली के लिए विख्यात हैं।

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राजस्थान के प्रमुख लोकनाट्य

1.ख्यात लोकनाट्य

  • राजस्थान के लोकनाट्यों में ख्यात सबसे लोकप्रिय विधा है।
  • राजस्थान में इन लोकनाथों के प्रमाण 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से मिलते हैं।
  • विषय वस्तु ख्यालों की विषय वस्तु पौराणिक विषयों से जुड़ी होने के साथ-साथ उसमें ऐतिहासिक तत्वों और वीराख्यानों का भी समावेश था।
  • भौगोलिक क्षेत्रों के अन्तर के आधार पर राज्य की प्रमुख ख्याले हैं शेखावाटी, कुचामनी, जयपुरी, अली बख्शी, तुर्रा कलगी, नौटंकी, किशनगढ़ी, मांची, हाथरसी आदि। इन ख्यालों के ऊपर संगीत, नृत्य और गीतों की प्रधानता होती हैं। जिस ख्याल में जो तत्व ज्यादा प्रधान होगा वह उस तत्व की ख्याल कहलाएगी जैसे संगीत ख्यात नृत्य ख्याल आदि । –

2.रम्मत लोकनाट्य

  • रम्मत लोकनाट्य बीकानेर क्षेत्र के प्रसिद्ध है।
  • इनका प्रादुर्भाव बीकानेर क्षेत्र में 100 से भी अधिक वर्षों पूर्व सावन व होली के अवसरों के समय होने वाली लोक काव्य प्रतियोगिताओं के द्वारा हुआ है। रम्मत की उत्पत्ति लोक कवियों के द्वारा राजस्थान के प्रसिद्ध महापुरूषों पर रचित काव्य रचनाओं को रंगमंच पर मंचित करने से हुई है।
  • रम्मत का प्रदर्शन मंच पर कलाकारों द्वारा दर्शकों के सामने विभिन्न प्रकार की वेशभूषा पहनकर किया जाता हैं।
  • रम्मत के दौरान नगाड़ा और ढोलक का प्रयोग मुख्य माद्य के रूप में किया जाता हैं।
  • राजस्थान के प्रमुख रम्मत क्षेत्र-बीकानेर, फलोदी, पोकरण, जैसलमेर तथा इनके आस-पास के क्षेत्र। रम्मत का सकारात्मक पहलु सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक बनाना भी है।
  • लोक ख्याति अर्जित प्रमुख रम्मत मोरध्वज डूंगजी जवाहरजी राजा हरीशचन्द्र, गोपीचन्द्र भरथरी, पूरन भक्त की रम्मत आदि ।

3.तमाशा लोकनाट्य

  • राजस्थान में तमाशे की प्रसिद्ध परम्परा जयपुर में रही हैं।
  • जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह के काल में इस लोकनाट्य की उत्पत्ति हुई।
  • उत्तर भारत से इस लोकनाट्य का विकास दक्षिण भारत में भी हुआ।
  • दक्षिण भारत में तमाशा लोकनाट्य का प्रसार करने वाले ये लोग “भट्ट’ कहताते हैं।
  • भट्ट परिवारों के द्वारा तमाशा लोकनाट्य में जयपुरी खपात और धुपद गायकी को शामिल किया गया है।
  • इस लोकनाट्य में संवाद काव्यमय होते हैं तथा तमाशे का मंचन खुले मंच पर किया जाता हैं।

4.भवाई लोकनाट्य

  • राजस्थान के गुजरात की सीमा वाले क्षेत्रों में भवाई नामक नृत्य नाटिका प्रसिद्ध है।
  • यह नाट्यकला व्यावसायिक है।
  • भवाई के पात्र व्यंग्यवक्ता होते है जिनका लक्ष्य सामाजिक तथा तत्कालिन समस्याओं पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना होता है।
  • इनका प्रदर्शन परम्परा के आधार पर किया जाता है किन्तु इसमें तत्कालिन सामाजिक समस्याओं का समावेश रहता है।
  • इसमें कथानक पर कम ध्यान दिया जाता हैं तथा गायन, नृत्य और हास्य पर ज्यादा ध्यान दिया जाता हैं।
  • भवाई जाति की उत्पति अजमेर के “नागोजी जाट ने की थी।
  • मेवाड़ अंचल का प्रसिद्ध लोक नाट्य इसमें बिना रंगमंच के पात्र व्यंग्यात्मक शैली में तात्कालिक सवाल-जवाब तथा समाजिक समस्याओं पर चोट करते है।
  • भवाई जाति का आदि पुरुष “बाघाजी को माना जाता है।
  • सांगीलाल सागड़ियों भवाई नाट्य के प्रसिद्ध कलाकार हैं।

5.नौटंकी लोकनाट्य

  • राजस्थान में नौटंकी का खेत चौलपुर तथा भरतपुर और उनके आस-पास के क्षेत्रों में किया जाता है।
  • कानख द्वारा किया जाता है।
  • प्रमुख अखाड़े – गंगापुर, करौली, अलवर तथा सवाई माधोपुर।
  • नौटंकी के प्रमुख विषयों के मंचन में नकाबपोश, सत्य हरीशचन्द्र, राजाभरधरी, रूप बसन्त आदि प्रमुख है।
  • सामाजिक समारोह, मेलो , विवाह-शादी तथा लोकोत्सवों के अवसर पर किया जाता है।

6.गवरी लोकनाट्य

  • राजस्थान के अन्दर मेवाड़ की गवरी प्रसिद्ध है।
  • इसके अन्तर्गत अनेक प्रकार की नृत्य नाटिकाएँ और झांकियों का प्रदर्शन किया जाता है जिनका विषय पौराणिक तथा लोक जीवन से संबंधित होता है।
  • गवरी का उद्भव शिव भस्मासुर की कथा से होता है जिसमें भस्मासुर का भगवान विष्णु द्वारा अन्त किये जाने के उपलक्ष में ‘शिवजी द्वारा भीलों के साथ नृत्य किया गया था जो गवरी के रूप में प्रचलित हुआ।
  • अरावली क्षेत्रों में रहने वाले भीलों के द्वारा प्रतिवर्ष 140 दिनों का गवरी समारोह आयोजित किया जाता है। यह समारोह उदयपुर के आस-पास के क्षेत्रों में मानसून की समाप्ति के समय किया जाता है।
  • गवरी रंगमंचीय कलात्मक तथा सांस्कृतिक अभिनय का मेल है। गवरी लोकनाट्य का प्रचलन भील समुदाय की ऐतिहासिक परम्परा से जुड़ा हुआ हैं। इसका आयोजन रक्षा बन्धन के दूसरे दिन से प्रारम्भ होता है।
  • गवरी के पात्र बावन भैरू, चौसठ योगीनी और नव-लाख देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। गवरी ताकनाट्य का प्रमुख पात्र बुढ़िया भस्मासुर का जप होता है तथा अन्य प्रमुख पात्र राया होता है जो स्त्री वेश में होता है। झामच्या पात्र कविता बोलता है और खट्कडया इसे दोहराता है। गवरी के अन्य सभी पात्रों को खेला कहते हैं। गवरी के पात्रों द्वारा भमरिया, गणपति, मीणा, कान गूजरी, जोगी, नटड़ी, लाखा बणजारा आदि प्रमुख खेले होते हैं। गवरी नाट्य के प्रमुख वाध्य मंजीरा, चीमटा, मादल और थाली गवरी के आयोजन के समय राई, बुढ़िया और भोपा 40 दिनों तक कठोर नियमों का पालन करते हैं। गवरी समाप्ति से दो दिन पहले जवारे बोये जाते है तथा 40 वे दिन जवारा और मिट्टी के साथ गवरी का विसर्जन किया जाता है। गवरी की समाप्ति के छठे दिन नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।

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7.रम्मत लोकनाट्य

  • रम्मत का अभिप्राय खेल है।
  • रम्मत बीकानेर, जैसलमेर, पोकरण और फलौदी क्षेत्र में होती है।
  • साहित्यिक्तारम्मतों की मुख्य विशेषता है।
  • रम्मत बीकानेर की लोकप्रिय लोकनाट्य विधा है।
  • रम्मतों के गीत चौमसा लावणी (भक्ति और श्रृंगार विषयक), गणपति वन्दना, व्यक्ति विशेष से संबंधित होते है।
  • बीकानेर के रम्मतों का प्रारम्भ “फक्कड़दाता री रम्मत’ से होता है।
  • पाटा संस्कृति का सम्बन्ध रम्मत लोकनाट्य से है।
  • प्रमुख रम्मते: पूरन भक्त, मोरध्वज, अमरसिंह राठौड़ री रम्मत, बारह गुवाड़ की रम्मत, हिडाउमेरी री रम्मत, रावलों की रम्मत आदि प्रमुख रम्मते है।
  • खेलार रम्मत खेलने वाले।
  • रम्मत में रंगमंचीय साज-सज्जा नहीं होती है।
  • बीकानेर में आचार्यों का चौक रम्मतों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं सुव्यवस्थित अखाड़ा है।
  • रम्मत आज भी गैर पेशेवर लोक नाट्य का ही रूप लिये हुए है।
  • जैसलमेर में तेजकवि ने रम्मतों का अखाड़ा प्रारम्भ किया था। तेजकवि ने “स्वतंत्र बावनी, मूमल, जोगी भर्तृहरि, छबीली तम्बोलन आदि प्रसिद्ध रम्मते रची थी। 1943 में तेजकवि ने “स्वतंत्र बावनी’ की रचना कर इसे महात्मा गांधी को भेट किया।

8.तमाशा लोकनाट्य

  • जयपुर की परंपरागत लोक नाट्य शैली
  • जयपुरी समाव पद चमार गिकी का सम्मिलित रूप है।
  • आमेर के राजा मानसिंह प्रथम (1594) के समय प्रादुर्भाव इस समय मोहन कवि द्वारा रचित का मंजरीका आमेर में प्रदर्शन किया गया।
  • जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ने तमाशा के प्रमुख कलाकार “बंशीधर भट्ट को अपने गुणीजनखाने में पश्रय देकर इस लोक नाट विधाको साहित किया गया।
  • तमाशे में बता सारंगी, नक्कारा और हारमोनियम ही प्रमुख वाद्य हैं।
  • कलाकार गोपाजी भट्ट फूलजी मह मनूजी महा
  • पठान, कान-गुजरी रसौती- तम्बोलन, हीर-रांझा, जोगी जोगन बंशीधर भट्ट द्वारा रचित तमाशे
  • तमाशों में स्त्री पात्रों की भूमिका स्त्रियों द्वारा ही अभिनित की जाती है।
  • समारों में काव्यात्मक संवाद खुले रंगमंच पर होता है, जिसे अखाड़ा कहते है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य (Rajasthan Ke Lokanaaty)

  • राजस्थान में आदिवासी भीलों की संस्कृति में लोकनाट्यों की परम्परा रही है जिसने राज्य में लोकनाट्यों के विकास में योगदान दिया है।
  • अलवर एवं भरतपुर के लोक नाट्यों में हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृतियों का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। धौलपुर एवं सवाई माधोपुर के लोक नाट्यों पर स्पष्टतः ब्रजभूमि की संस्कृति का प्रभाव झलकता है। राजस्थान में लोकनाटयों की नियमित परम्परा का प्रचलन 18 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में शुरू हो गया था।
  • राजस्थान के मरूस्थलीय क्षेत्रों में सरगरा, नट, भाट आदि पेशेवर जनजातियों द्वारा जीविका के लिए स्वांग, लोकनाट्य आदि को मनोरंजन के रूप में विकसित किया गया।

आज के इस आर्टिकल में हमने राजस्थान के प्रमुख लोक नाट्य (Rajasthan Ke Lokanaaty) पर विस्तार से चर्चा की है। हालाँकि ये टॉपिक छोटा है लेकिन कई परीक्षा में यहाँ से सवाल बना है इसलिए आप को बताना जरुरी समझा। अगर आप को पंसद आया तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे ताकि वो भी हमारे साथ जुड़ जाये। जिससे वो भी अपने प्रतियोगी परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ से प्राप्त कर सके।

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