Painting of Rajasthan: राजस्थान की चित्रकला के साथ कार्यरत संस्थान,प्रमुख चितेरे,जाने यहाँ से सम्पूर्ण जानकारी

राजस्थान की चित्रकला (Painting of Rajasthan) एक महत्वपूर्ण अध्याय है और इससे राजस्थान की प्रत्येक प्रतियोगी परीक्षा में नये प्रकार का हर बार एक नया प्रकार का प्रश्न अपने को देखने को मिलता है। चित्रकला नाम से स्पष्ट है चित्र बनाने की कला जिस प्रकार नृत्य करने की कला नृत्य कला, हाथ से वस्त्र बनाने की कला हस्तकला कहलाती है। उसी प्रकार चित्र बनाने की कला चित्रकला कहलाती है।

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Painting of Rajasthan

Painting of Rajasthan

साथियों चित्रकला का यह जो अध्याय है इसमें शब्दों का खेल है इसमें थोड़े से कठिन शब्द आपको देखने को मिलते हैं। कुछ विद्वानों के नाम आपको इसमें देखने को मिलते हैं नाम और तथ्यों आपको याद होते हैं तो इसमें ज्यादा घुमा फिरा कर सवाल नहीं आते हैं। इस अध्याय के कुछ निश्चित फैक्ट है अगर वह अपने को याद होते हैं तो परीक्षा में हम चित्रकला का प्रश्न आसानी से हल कर सकते हैं.

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प्रतियोगी परीक्षा में चित्रकला से कैसा प्रश्न बनता है जाने

मित्रों आप ने पिछली प्रतियोगी परीक्षा को उठाकर देखी होगी चित्रकला का प्रश्न जो बन रहा है। पिछले कई परीक्षाओं में 12 से 15 प्रतियोगी परीक्षा के पेपर उठाकर देखेंगे तो एक ही तरह का प्रश्न इस चित्रकला का बन रहा है वह प्रश्न है कुछ भी नाम लिखकर दे देता है और उसका संबंध किस चित्र शैली से है उसके बारे में पूछता है लेकिन हम चित्रकला पढ़ रहे हैं तो कभी भी प्रश्न बनने का ट्रेंड चेंज हो सकता है इसलिए हम पूरी चित्रकला के एक-एक बिंदु की जानकारी आपको यह देने वाले हैं।

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चित्रकला के संबंध में सामान्य जानकारी

  • भारतीय चित्रकला का जनक रवि वर्मा को कहा जाता है और इनका संबंध केरल से है।
  • राजस्थान चित्रकला का जनक आनंद कुमार स्वामी को कहा जाता है इनके द्वारा रचित राजपूत पेंटिंग मे राजस्थानी चित्रकला (Painting of Rajasthan) का सर्वप्रथम वैज्ञानिक विभाजन किया गया।
  • राजस्थानी चित्रकला का आधुनिक जनक कुंदन लाल मिस्त्री को कहा जाता है।
  • राजस्थानी चित्रकला की शुरुआत 15-16 वीं सदी के मध्य होती है।
  • कॉल खंडेल वाला- के अनुसार राजस्थानी चित्र शैली का स्वर्ण काल 17-18 वीं सदी के मध्य माना गया है।
  • राजस्थानी चित्रकला की उत्पत्ति गुजराती या जैन या अजंता अपभ्रंश से मानी जाती है।
  • राजस्थानी चित्र शैली के प्राचीन नाम-राजस्थानी चित्र शैली को हिंदू चित्र शैली N.C मेहता ने कहा था।
  • राजपूत चित्र शैली गांगुली व हैवल ने राजस्थानी चित्र शैली रामकृष्ण दास और कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था।
  • नोट-तिब्बत के इतिहासकार तारा नाथ शर्मा के अनुसार राजस्थान का प्रथम चित्रकार मरू प्रदेश का श्रंगधर जो यक्ष शैली का चित्रकार था।
  • राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्र ग्रंथ दसवैकालिक सूत्र चुर्णी इसको वर्तमान में जिन भद्र सूरी भूमिगत संग्रहालय या जैन भंडार जैसलमेर में सुरक्षित रखा गया है।
  • राजस्थान में चित्रकला (Painting of Rajasthan) की जन्मभूमि मेदपाट या मेवाड़ को कहा जाता है।
  • मेवाड़ चित्र शैली का प्रथम चित्र ग्रंथ श्रावण प्रति क्रमण चूर्णी हैं।
  • इसका चित्रकार कमल चंद्र है।
  • मेवाड़ शासक तेज सिंह के काल में रचित है।
  • वर्तमान में सरस्वती भंडार उदयपुर में सुरक्षित रखा गया है।
  • दर भरतपुर से प्राचीन पक्षियों के चित्रों की खोज व आलनिया कोटा से 500 वर्ष पुराने शैल चित्रों की खोज डॉक्टर जगन्नाथपुर और विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी।
  • बैराठ सभ्यता से प्राप्त प्राचीन चित्रों के आधार पर राजस्थानी चित्र शैली को प्राचीन युग की सभ्यता का जाता है।

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राजस्थान में चित्रकला विकास हेतु कार्यरत संस्थान

1. कलावृत, आयम, पैग, ललित कला अकादमी, क्रिएटिव आर्टिस्ट्स गुप जयपुर 
2. मयूर निवाई-टोंक 
3.  अंकन  भीलवाड़ा
4. चितेरा, धोरा, मान प्रकाश  जोधपुर 
5. आज, टमखडा 28,पश्चिमी संस्कृति केंद्र, सरस्वती  उदयपुर
6. अतला, शुभम 
बीकानेर

चित्रकला से संबंधित प्रमुख शब्दावली

  • जोतदाना-चित्रों का संग्रह या एल्बम।
  • चितेरा- राजस्थान में चित्रकार को चितेरा कहा जाता है।
  • मोरनी माडणा- इस चित्रकला का प्रचलन मीणा जनजाति में है।
  • डमका- चित्रों में प्रयुक्त रंग।
  • नोट- राजस्थानी चित्रकला (Painting of Rajasthan) में पीले व लाल रंग का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है।

राजस्थान के प्रमुख चितेरे

  • भीलो का चित्र और बरात का चितेरा- बाबा गोवर्धन लाल।
  • नीड का चितेरा- सौभाग्य मल गहलोत।
  • श्वानो का चितेरा- जगमोहन माथेडिया।
  • जैन शैली का चितेरा- कैलाश वर्मा।
  • भैंसों का चितेरा- परमानंद चोयल।
  • गांव का चितेरा- भूर सिंह शेखावत।
  • पशुओं व भित्ति चित्रण का चितेरा- देवकीनंदन शर्मा।
  • प्रताप के चित्रों का चित्रण- A.K. मूलर।

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राजस्थान की चित्रकला को चार प्रमुख स्कूलों में बांटा गया हैं

उदयपुर चित्र शैली या मेवाड़ चित्र शैली

आरंभ काल  राणा कुंभा
 स्वर्णकाल  जगत सिंह प्रथम
प्रधान रंग  पीला
चित्रकार साहबुद्दीन, रुकनुद्दीन, भैराराम, कृपाराम, मनोहर, देवनंदा, रामु, मुन्ना, घासीदास आदि।
  • मेवाड़ चित्र शैली को चित्र शैलियों की जननी कहा जाता है।
  • अजंता शैली का सर्वप्रथम प्रभाव मेवाड़ चित्र शैली पर आया।
  • चित्रकारों के प्रशिक्षण हेतु जगत सिंह प्रथम ने कला विद्यालयों की स्थापना की जिसे “चितेरो री ओवरी” एवं “तस्वीरों रो कारखानों” कहा गया है।
  • राणा कुंभा को राजस्थानी चित्रकला का जनक कहा जाता है।
  • सुपार्श्वनाथ चरित्रम यह एक जैन ग्रंथ है राणा मोकल के काल में चित्रित हुआ था। इसका चित्रकार हीरानंद था। देलवाड़ा सिरोही में इस चित्र का चित्रण किया गया था। देवकूल पाठक के निर्देशक में लिखा गया था।
  • 1540 ई नानकराम ने भागवत पुराण का चित्रण किया।
  • 1651 ई मे मनोहर नामक चित्रकार ने मेवाड़ चित्र शैली में रामायण का चित्रण किया जिसे मेवाड़ की मोनालिशा कहा जाता है इसे वर्तमान में मुंबई संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
  • विष्णु शर्मा द्वारा लिखित कहानी पंचतंत्र का चित्रण मेवाड़ चित्र शैली में नूरदीन नामक चित्रकार द्वारा किया गया इस कहानी में कलिला व दामीना नामक दो गीदडो का वर्णन है।
  • नीला आकाश, मछली नुमा आंखें, बारहमासा, कदम वृक्ष, कोयल व सारस पक्षी, चकोर पक्षी का चित्रण इस शैली में हुआ है।

नाथद्वारा चित्र शैली

आरंभ काल राजसिंह
 स्वर्ण काल राजसिंह
प्रधान रंग हरा, पीला, पृष्ठभूमि रंग, निंबुआ, गुलाबी।
प्रमुख चित्रकार नारायण, चतुर्भुज, नरोत्तम, हरदेव, देवकृष्ण, घनश्याम, विट्ठलदास, उदयसिंह, घासी लाल।
महिला चित्रकार  कमला, इलायची
  • प्रमुख चित्र राधा कृष्ण के चित्र, पिछवाई, केले के वृक्ष, गांय, कृष्ण लीला आदि के चित्र शैली में हुए।
  • यहाँ एक धार्मिक चित्र शैली है।
  • नाथद्वारा चित्र शैली को कृष्ण भक्ति के चित्र शैली का जाता है।

देवगढ़ की चित्र शैली

आरंभ काल द्वारिका प्रसाद
स्वर्ण काल महाराणा जयसिंह काल
  • नोट- इस चित्र शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय श्रीधर अंधारे को जाता है।
  • यह चित्र शैली मेवाड़, मारवाड़, ढूंढाड़ चित्र शैली का मिश्रण होने के कारण कोकटेल चित्र शैली का जाता है।
  • इस चित्र शैली में मोती महल व आजारा हवेली, भित्ति चित्रों का आकर्षण है।
  • इस चित्र शैली के प्रमुख चित्रकार कमल, चौखा, बैजनाथ, कंवला।

चावंड की चित्र शैली

आरंभ काल महाराणा प्रताप
  स्वर्णकाल अमरसिंह प्रथम
  • प्रमुख चित्रकार निसारद्दीन या नसीरुद्दीन है।
  • 1595 में महाराणा प्रताप के काल में निसारद्दीन द्वारा “ढोला मारु” का चित्रण किया गया।
  • 1605 ई में अमरसिंह प्रथम के काल में निसारद्दीन द्वारा “राग माला सेट” का चित्रण किया गया।

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