Physical Features and Physical Divisions of Rajasthan, North-Western Desert Area: राजस्थान की उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग की सारी जानकारी यहाँ से जाने

यहाँ पर राजस्थान की उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग (North-Western Desert Area of Rajasthan) की सभी जानकारी यहाँ दी गई है। यहाँ आप के लिए अति उपयोगी एक्साम्स के पूछी जाने वाली सभी बातो को यहाँ शामिल किया गया है। राजस्थान का पहली बार भौतिक विभाजन प्रो. वी.सी. मिश्रा द्वारा लिखित एवं नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा 1968 में प्रकाशित पुस्तक ‘राजस्थान का भूगोल’ में किया गया था। इस में राज्य को 7 भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया- (1) पश्चिमी शुष्क प्रदेश (2) अर्द्धशुष्क प्रदेश (3) नहरी क्षेत्र (4) अरावली पहाड़ी (5) पूर्वी कृषि औद्योगिक प्रदेश (6) दक्षिणी पूर्वी कृषि प्रदेश (7) चम्बल बीहड़ प्रदेश |

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North-Western Desert Area of Rajasthan
North-Western Desert Area of Rajasthan

राजस्थान विश्व के प्राचीनतम भू-खंडों का अवशेष

  • प्राक- ऐतिहासिक काल (इयोसीन काल व प्लीस्टोसीन काल) में विश्व दो भूखंडों – (i) अंगारालैण्ड व (ii) गौंडवाना लैण्ड में विभक्त था, जिनके मध्य टेथिस सागर (इयोसिनकाल व प्लीस्टोसीन काल के प्रारंभ तक) विस्तृत था।
  • राजस्थान में उत्तरी पश्चिमी मरू प्रदेश व पूर्वी मैदान इसी टेथिस महासागर के अवशेष माने जाते हैं, जो कालान्तर में नदियों द्वारा लाई गई तलछट मिट्टी के द्वारा पाट दिए गए हैं।
  • राज्य के अरावली पर्वतीय एवं दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग गौंडवाना लैण्ड के हिस्से हैं।
  • राजस्थान के भू-आकृतिक स्वरूप अति प्राचीन हैं, जो दीर्घकाल की अपरदन एवं निक्षेपण प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप बने हैं।

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उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीयमें विद्यमान उच्चावच व भौतिक स्वरूप को जलवायु व धरातल के अंतरों के आधार पर मुख्यत: निम्न चार भौतिक विभागों में बाँटा जा सकता है:

(1) उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय (शुष्क) प्रदेश
(2) मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश
(3) पूर्वी मैदानी भाग
(4) दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश

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उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग (North Western Desert Area)

  • जैसलमेर क्षेत्र में पायी जाने वाली चट्टानों में प्राप्त समुद्री जीवाश्मों के आधार पर यह माना जाता है कि अपर टर्शियरी काल तक पश्चिमी मरुस्थलीय भाग पर टेधीस समुद्र विस्तृत था जो भूगर्भिक हलचलों के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे खिसकता गया।
  • टेथस सागर के पीछे खिसकने के परिणामस्वरूप उत्पन्न सिकुड़न क्रिया से ऊँची हुई समुद्री तली से इस क्षेत्र का उद्भव हुआ। इस क्षेत्र में मौजूद खारे पानी की झीलें यहाँ टेंथीस सागर होने का प्रमाण है। इस क्षेत्र की झीलों के खारा होने व नमक उत्पत्ति का मुख्य कारण इनके गहराई में पाई जाने वाली माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें हैं जिनसे केशाकर्षण (Capilarity) पद्धति से नमक सतह पर आता रहता है। साथ ही नदियाँ अपने पानी के साथ नमक के कण भी बहाकर लाती है।
  • पश्चिमी रेगिस्तान के बाड़मेर एवं जैसलमेर के क्षेत्रों में तेल एवं प्राकृतिक गैस के अथाह भण्डार मिलने का कारण यहाँ टर्शियरी काल की चट्टानों की मौजूदगी का ही माना जाता है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार दशियरी काल की चट्टान में खनिज तेल एवं गैस के भण्डार सर्वाधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
  • उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थलीय भू-भाग की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगती हुई अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा (रेडक्लिफ लाइन) है तथा पूर्वी सीमा राज्य को दो जलवायवीय भागों में बाँटने वाली अरावली पर्वतमाला (भारत की महान जल विभाजक रेखा) 50 सेमी वार्षिक वर्षा रेखा बनाती है। राज्य के इस मरुस्थलीय भू-भाग की दक्षिणी सीमा पर गुजरात तथा उत्तरी सीमा पर पंजाब व हरियाणा राज्य स्थित है।

 पश्चिमी मरुस्थलीय भू-भाग के विस्तार एवं प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्न प्रकार है।
जिले :- जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, जालौर, चूरू, सीकर, झुंझुन तथा पाली जिले का पश्चिमी भाग ( 12 जिले) |

उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग की विशेषताएँ :-

 1.   क्षेत्रफल    राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61% भाग (लगभग 20,9000 वर्ग किमी क्षेत्र) (डॉ. एच. एम. सक्सेना द्वारा लिखित पुस्तक में 175000 वर्ग किमी) । यह प्रदेश उत्तर पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में 640 किमी. लम्बा एवं पूर्व से पश्चिम में 300 किमी. चौड़ा है।
 2.  जनसंख्या   राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 40%.
3.   वर्षा  20 सेमी से 50 सेमी। अत्यधिक न्यून वयां के कारण इसे शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं।
 4.  तापमान   गर्मियों में उच्चतम 49° से ये तक तथा सदियों में -3° से ये तक।
 5.  जलवायु    शुष्क व अत्यधिक विष।
 6.  मिट्टी  रेतीली बलुई। मुख्य फसले बाजरा, मोठ व ग्वार।
 7.  वनस्पति   बबूल, फोग, खेजड़ा, कैर, बेर व सेवण घास आदि।

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  1. यह भू-भाग असुवली पर्वतमाला के उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिम में विस्तृत है। अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून (अरब बंगाल की खाड़ी का मानसून) सामान्यत: यहाँ वा बहुत कम करता है। अत: वर्षा का वार्षिक औसत 20-50 सेमी. रहता है। यह मरुस्थल ग्रेट पेलियो आर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का ही एक विस्तृत भाग है जो पश्चिमी एशिया के फिलीस्तीन, अस्य एवं ईरान होता हुआ भारत तक विस्तृत गया
  2. इस प्रदेश का सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है ( या उत्तर-पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है)। इसकी समुद्र तल से सामान्य ऊंचाई 200 मीटर दक्षिण में) से 300 मीटर (उत्तरी भाग में) है।
  3. रेत के विशाल बालुका स्तूप इस भू-भाग की प्रमुख विशेषता है।
  4. प्रदेश में लिग्राइट, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस व लाइम स्टोन के विशाल भण्डार मौजूद है।
  5. यह भू-भाग टेथिस सागर (इयोसीन एवं प्लीस्टोसीन काल में विद्यमान) का अवशेष है।
  6. प्रमुख नमक स्त्रोत: सांभर, पचपदरा, डीडवाना व लूणकरणसर आदि लवणीय झीले ।

  यह क्षेत्र निम्न दो भागों में बांटा जा सकता है-

(i) रेतीला शुष्क मैदान
(ii) अर्द्ध शुष्क मैदान
25 सेमी सम वर्षा रेखा इन दोनों क्षेत्रों को अलग करती है |

 पश्चिमी विशाल मरुस्थल या रेतीला शुष्क मैदान या महान मरुभूमि (Great Indian Desert):-

  • इसमें वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेमी तक रहता है।
  • (बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर आदि क्षेत्र में) वर्षा अत्यधिक कम होने के कारण इस प्रदेश को शुष्क बालूका मैदान भी कहते हैं।
  • इसका अधिकांश भाग बालुका स्तूपों से आच्छादित है।
  • यह बालुका स्तूपों से ढँका भू-भाग पाकिस्तान की सीमा के सहार सहारे कच्छ, गुजरात से पंजाब तक विस्तृत है।
  • यह पश्चिमी शुष्क मैदान 25 सेमी सम वर्षा रेखा के पश्चिमी भाग में तथा रेडक्लिफ रेखा के पूर्व में स्थित है।

पश्चिमी रेतीले शुष्क मैदान के भी दो उपविभाग हैं

1. बालुकास्तूप युक्त मरुस्थलीय प्रदेश
2. बालुकास्तृप मुक्त (रहित ) क्षेत्र

 बालुकास्तूप युक्त प्रदेश :-

  • बालुकास्तूप युक्त क्षेत्र में बालू रेत के विशाल टीले पाये जाते हैं जो तेज हवाओं के साथ अपना स्थान बदलते रहते हैं।
  • ये बालुकास्तूप वायु अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम हैं।
  • इनका स्थानान्तरण मार्च से जुलाई माह के मध्य में सर्वाधिक होता है।
इस रेतीले शुष्क मैदान के बालुकास्तूप युक्त क्षेत्र में निम्न प्रकार के बालूका स्तूपों का बाहुल्य पाया जाता है

1. पवनानुवर्ती ( रेखीय) बालुकास्तूपः

  • ये बालुका स्तूप इस रेगिस्तानी भू-भाग के पश्चिम तथा दक्षिण भाग मुख्यतः जैसलमेर, जोधपुर एवं वाड़मेर में वायु की दिशा के अनुरूप पाये जाते हैं।
  • इन पर कुछ वनस्पति पाई जाती है।
  • इन स्तूपों में लम्बी धुरी वायु की दिशा के समानान्तर होती है।

2. बरखान या अर्द्धचन्द्राकार बालुकास्तृपः

  • चुरू, जैसलमेर, सीकर, लूणकरणसर, सूरतगढ़, बाड़मेर, ओसियाँ, जोधपुर आदि में ये गतिशील रंध्रयुक्त व नवीन बालुयुक्त स्तूप होते हैं, जो श्रृंखलाबद्ध रूप में पाये जाते हैं।
  • मरु भूमि के उत्तरी भाग में इनकी बहुलता है।
  • बरखान बालुकास्तूप प्रायः वनस्पतिविहीन होते हैं तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित होते रहते हैं।
  • इन यालुकास्तूपों का पवनानुवर्ती भाग लम्बा व पूछनुमा तथा शीघ्रं भाग अर्द्धचन्द्राकार व इनका आखिरी छोर गर्तनुमा, समतल तथा उपजाऊ होता है।
  • इन बालुकास्तूपों की दोनों भुजाओं के बीच वायु की रगड़ से बने गत को स्थानीय बोली में ‘थली’ (Thali) या ‘ढण्ड’ (Dhand) कहते हैं।
  • इन बालुकास्तूपों की दिशा सामान्यत: मार्च से दक्षिणी-पश्चिमी पवनों के अनुरूप होती है।

3. अनुप्रस्थ बालुकास्तूपः

  • ये बीकानेर, दक्षिण गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, सूरतगढ़, झुंझुनूँ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • बालुकास्तूप दीर्घकाल तक वायु के एक दिशा में प्रवाहित होने पर पवन की दिशा के समकोण पर बनते हैं।
  • ये स्तूप अद्धं शुष्क भागों में अधिक स्थिर रहते हैं तथा मरु भूमि के पूर्वी एवं उत्तरी भागों में अधिक पाये जाते हैं।

4. पेराबोलिक बालुकास्तूप:

  • ये सभी मरुस्थली जिलों में विद्यमान हैं।
  • इनका निर्माण वनस्पति एवं समतल मैदानी भाग के बीच उत्पाटन (deflation) से होता एवं आकृति महिलाओं के हेयरपिन की तरह होती है।
  • दक्षिण-पश्चिम भाग में इनका आकार अत्यधिक विस्तृत एवं उत्तरी-पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत छोटा होता है।

5. ताराबालुका स्तूपः

  • मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़ (गंगानगर)।
  • इन वालुकास्तूपों का निर्माण मुख्य रूप से अनियतवादी एवं संश्लिष्ट पवनों के क्षेत्र में ही होता है।
  • ये बालुकास्तूप शृंखलाबद्ध रूप में पाये जाते हैं जो औसतन 10-25 मीटर तक ऊँचे होते हैं।

6. नेटवर्क बालुकास्तूप:

  • ये उत्तरी पूर्वी मरुस्थलीय भाग- हनुमानगढ़ से हिसार-भिवानी (हरियाणा) तक मिलते हैं।
  • इनका निर्माण रेखीय, अनुप्रस्थ एवं पैराबोलिक बालुकास्तूपों के पाश्र्वों पर एवं उनके बीच के क्षेत्रों में होता है।

7. अवरोधी बालुकास्तूपः

  • इन बालुकास्तूपों का निर्माण किसी अवरोध के कारण बालु के जमाव से होता है।
  • ये अवरोध के पवनानुमुखी एवं पवनविमुखी दोनों ओर पाये जाते हैं।
  • जैसे- बूढ़ा पुष्कर, नाग पहाड़, सीकर, कुचामन आदि में पाये जाने वाले बालुकास्तूप।
  • इन्हें अवशिष्ट अवरोधो जीवाश्मयुक्त बालुकास्तूप भी कहते हैं।
  • उन बालुकास्तूपों पर वनस्पति का विस्तृत आवरण होने के कारण ये सामान्यत: स्थिर रहते हैं।
  • इस प्रकार के बालुकास्तूप अरावली पर्वत श्रृंखला के कुछ पूर्वी हिस्सों यथा- चाकसू, बगरू, फागी, जम्बड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

8. श्रब कापीस बालुकास्तूप (Shrub Coppice Sand Dunes):

  • ये वालुकास्तृप छोटी-छोटी झाड़ियों, घास के झुण्ड आदि के आस-पास बालु रेत के जमाव से उत्पन्न होते हैं।
  • मरुस्थलीय क्षेत्र के लगभग सभी भागों में इस प्रकार के बालुकास्तृप दिखाई देते हैं।
  • इनकी औसतन ऊँचाई 5 मीटर से भी कम होती है एवं ये अस्थिर प्रकृति के होते हैं।

बालुकास्तृप मुक्त प्रदेश :-

  • रेतीले शुष्क मैदान के पूर्वी भाग में बालुकास्तृप मुक्त प्रदेश भी है जिसमें बालुकास्तपों का अभाव है। फलौदी (जोधपुर) एवं पोकरण (जैसलमेर) तहसील का कुछ भाग बालुका मुक्त प्रदेश है। इस क्षेत्र को जैसलमेर-बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते हैं।
  • इस क्षेत्र में जुरैसिक काल एवं टरशियरी व प्लीस्टोसीन काल की परतदार चट्टानों (अवसादी चट्टानों) का बाहुल्य है। इयोसीन काल एवं प्लीस्टोसीन युग में इस क्षेत्र में एक विशाल समुद्र (टेथीस सागर) था, जिसके अवशेष यहाँ पाये जाने वाले चट्टानी समूहों में मिलते हैं। यहाँ कठोर चट्टानें समतल या छोटी पहाड़ियों के रूप में विस्तृत हैं।
  • इनमें चूना पत्थर एवं बलुआ पत्थर की चट्टानें मुख्य हैं। जैसलमेर शहर जुरैसिक काल की बलुआ पत्थर से निर्मित्त चट्टानी मैदान पर स्थित है। इन चट्टानों में वनस्पति अवशेष एवं जीवाष्म (Fossils) पाये जाते हैं।
  • जैसलमेर के राष्ट्रीय मरुउद्यान में स्थित आकल वुड़ फोसिल पार्क इसका (जीवाश्मों का) अनूठा उदाहरण है। इस प्रदेश की अवसादी शैलों में भूमिगत जल का विशाल भण्डार है।
  • लाठी सीरीज क्षेत्र इसी भूगर्भीय जल पट्टी का अच्छा उदाहरण है। इन्हीं दशीयरीकालीन चट्टानों में प्राकृतिक गैस एवं खनिज तेल के भी व्यापक भण्डार मौजूद हैं।
  • बाड़मेर (गुड़ामालानी, बायतु आदि) एवं जैसलमेर क्षेत्र में तेल एवं गैस के व्यापक भण्डारों के मिलने का कारण वहाँ टर्शियरी काल की चट्टानों का होना माना जाता है। बेसर श्रेणी, जैसलमेर श्रेणी व लाठी श्रेणी में मध्यजीवी महाकल्प के जुरासिक कल्प की चट्टानें विद्यमान हैं।
  • पश्चिमी महान मरुस्थल के पूर्वी भाग में कच्छ के रन से शुरु होकर बीकानेर की महान् मरुभूमि तक फैले हुए मरुस्थलीय भाग को लघु मरुस्थल कहते हैं। इस भाग में बालुकास्तूपों के बीच-बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि पाई जाती है, जहाँ वर्षा का पानी भर जाने से अस्थाई झीलों व दलदलों का निर्माण हो। जाता है, जिन्हें ‘रन’ (Rann) कहते हैं।

(ii) अर्द्धशुष्क मैदान या राजस्थान बांगर (बांगड़) :-

  • अर्द्धशुष्क मैदान महान् शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में व अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित है। यह अर्द्धशुष्क मैदान 25 सेमी सम वर्षा रेखा के पूर्व में स्थित है।
  • यह आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र है। इसका उत्तरी भाग घग्घर का मैदान, उत्तरपूर्वी भाग शेखावाटी का आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र, व दक्षिण-पश्चिमी भाग लूनी नदी बेसिन तथा मध्यवर्ती भाग नागौरी उच्च भूमि है।
  • यह संपूर्ण क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु के मध्य का संक्रमणीय या परिवर्ती (Transitional) जलवायु वाला क्षेत्र है।
  • 25 सेमी समवर्षा रेखा इस प्रदेश के पश्चिम में स्थित है। इस सम्पूर्ण प्रदेश को निम्न चार भागों में विभाजित करते हैं

1. घग्घर का मैदानः

  • अर्द्धशुष्क प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित इस मैदानी भाग का निर्माण मुख्यत: घग्घर, वैदिक सरस्वती, सतलज एवं चौतांग नदियों की जलोढ़ मिट्टी से हुआ है।
  • ये सभी नदियाँ क्वाटरनरी कल्प में हिमालय से निकलकर इस प्रदेश में प्रवाहित होती थी, जो कालान्तर में जलवायु परिवर्तनों के कारण धीरे-धीरे लुप्त हो गई और यह क्षेत्र शुष्क जलवायु क्षेत्र में परिवर्तित हो गया। यह मुख्यत: हनुमानगढ़ एंव गंगानगर जिलों में विस्तृत है।
  • इस क्षेत्र में वर्तमान में घग्घर नदी प्रवाहित होती है, जो मृत नदी (Dead River) के नाम से भी जानी जाती है। यह नदी भटनेर के पास रगिस्तान में लगभग विलुप्त हो जाती है।

वर्षा ऋतु में इसमें कई बार बाढ़ आ जाती है, जो हनुमानगढ़ जिले को जलमग्न कर सूरतगढ़ (गंगानगर) तक पहुँच जाती है। इस नदी के पाट को हनुमानगढ़ क्षेत्र में ‘नाली‘ कहते हैं। घग्घर में अधिक बाढ़ आ जाने पर इसका पानी पाकिस्तान में फोर्ट अब्बास तक पहुँच जाता है। घग्घर नदी पौराणिक काल की सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। अब सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी है।

2. लूनी-जवाई बेसिन या गौड़वार क्षेत्र:

  • लूनी एवं उसकी सहायक नदियों के इस अपवाह क्षेत्र को गौड़वाड़ प्रदेश कहते हैं।
  • इसमें जोधपुर, जालौर, पाली आदि के क्षेत्र शामिल हैं। यह नदी निर्मित्त अर्द्धशुष्क मैदानी भाग है।
  • इस क्षेत्र में जालौर-सिवाना की पहाड़ियाँ स्थित हैं जो ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • इसके अलावा मालाणी पहाड़ियाँ एवं चूने के पत्थर की चट्टानें भी इस क्षेत्र में पाई जाती हैं।
  • कच्छ के रन से वायु द्वारा बालू रेत के बिना किसी बाधा के यहाँ तक बहाकर ले आने से नदियों के मार्ग अवरुद्ध होते रहते हैं।
  • फलत: वे अपना मार्ग बदल लेती हैं।
  • इस प्रदेश में बालोतरा के बाद लूनी नदी का पानी नमकयुक्त चट्टानों, नमक के कणों एवं मरुस्थलो प्रदेश के अपवाह तंत्र के कारण खारा हो जाता है।
  • इस क्षेत्र में जसवंतसागर (पिचियाक बाँध), सरदारसमन्द, जवाई बाँध, हेमावास बाँध एवं नयागाँव आदि बाँध निर्मित्त किये गये हैं। लूनी बेसिन की पूर्वी सीमा कालाभूरा ड्रॅगर है ।

3. नागौरी उच्च भूमि प्रदेश:

  • राजस्थान बांगड़ प्रदेश के मध्यवर्ती भाग को नागौर उच्च भूमि कहते हैं।
  • इस क्षेत्र में नमकयुक्त झीलें, अन्तप्रवाह जलक्रम, प्राचीन चट्टानें एवं ऊँचा-नीचा धरातल मौजूद है।
  • इस प्रदेश की मिट्टी में लवण (सोडियम क्लोराइड) की अधिकता के कारण यह क्षेत्र बंजर एवं रेतीला है।
  • इस क्षेत्र में डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावां आदि खारे पानी की झीलें हैं जहाँ नमक उत्पादित होता हैं।
  • इस प्रदेश में गहराई में माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें हैं, जिनसे केशिकात्व के कारण नमक सतह पर आता रहता है।
  • साथ ही नदियों द्वारा पानी के साथ नमक के कण बहाकर लाने आदि के कारण इनमें वर्ष प्रतिवर्ष नमक उत्पादित होता रहता है।
  • इस भू-भाग के परबतसर एवं नावा क्षेत्र में कुछ पहाड़ियाँ हैं तथा शेष भागों में रेतीली मिट्टी विद्यमान है।

4. शेखावाटी का आंतरिक प्रवाह क्षेत्र:

  • बांगड़ (बांगर) प्रदेश के इस भू-भाग में चुरू, सीकर, झुंझुनूँ व उत्तरी नागौर का कुछ भाग आता है।
  • इसके उत्तर में घग्घर का मैदान तथा पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखला है तथा पश्चिम में 25 सेमी सम वर्षा रेखा है।
  • इस प्रदेश में बरखान प्रकार के बालुकास्तूपों का बाहुल्य है ।
  • कम वर्षा, बालुका स्तूपों की दीवार एवं बलुई मिट्टी आदि के कारण यह संपूर्ण प्रदेश आंतरिक जल प्रवाह का क्षेत्र है।
  • इस प्रदेश की सभी नदियाँ काँतली, मेंथा (मेंढा), रूपनगढ़, खारी, बाण्डी का नाला, खण्डेल आदि आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ हैं, जो वर्षा ऋतु में इस भाग में बहकर या तो किसी झील में मिल जाती है या मैदानी भाग में विलुप्त हो जाती हैं।

25 सेमी. की सम वर्षा रेखा इस प्रदेश को महान शुष्क मरुस्थल से अलग करती है। इस भू-भाग में जल प्राप्ति हेतु कच्चे व पक्के कुओं का निर्माण किया जाता है, जिन्हें जोहड़ या नाड़ा कहते हैं। इस क्षेत्र में कहीं-कहीं बालुकास्तूपों के बीच में वर्षा का जल इकट्ठा हो जाता है जिसे सर या सरोवर कहते हैं, जैसे- मानासर, पूलासर, सालासर, कानासर, जस्सूसर आदि।

» इंदिरा गाँधी नहर :

इस क्षेत्र को मुख्य नहर व जीवन रेखा नहर आने के बाद इस क्षेत्र में अन्य फसलें भी होने लगी हैं। अब धीरे-धीरे यह भू-भाग हरा-भरा। होने लगा है.

» राष्ट्रीय मरु उद्यान प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण्य है जो राज्य का सबसे बड़ा वन्य जीव अभयारण्य है। यह मरुधान जैसलमेर एवं बाड़मेर जिलों में विस्तृत हैं। यहाँ स्थित आकलवुड फौसिल पार्क प्रसिद्ध है।

» धार मरुस्थल थली या शुष्क बालू का मैदान के नाम से भी जाना जाता है जो ‘ग्रेट पेलियोआर्कटिक अफ्रीकी मरुस्थल’ का पूर्वी भाग है। संपूर्ण थार मरुस्थल का लगभग 62% क्षेत्र अकेले राजस्थान में है। इसे महान् भारतीय मरुस्थल (Great Indian Desert) या थार का मरुस्थल (Thar Desert) भी कहते हैं।

» सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है। यही नहीं सबसे अधिक जैव विविधता भी इसी में पाई जाती है। इस सम्पूर्ण मरुस्थल में बालुका-स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थायी झीलों व दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे ‘रन’(Rann) कहते हैं। कनोड़, बरमसर, भाकरी, पोकरण (जैसलमेर), बाप (जोधपुर) तथा थोब (बाड़मेर) प्रमुख रन हैं।

» 50 सेमी सम वर्षा रेखा इसे राज्य के अन्य भागों से अलग करती है। इस भू-भाग की पश्चिमी सीमा ‘रेडक्लिफ रेखा’ (पाकिस्तान के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा) है।

» इस प्रदेश की प्रमुख नदी लूनी है, जो नागपहाड़ (अजमेर) से निकलकर नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर व जालौर में बहकर कच्छ के रन (गुजरात)

» पश्चिमी शुष्क मरुस्थल का लगभग 60 प्रतिशत भाग बालुकास्तूपों से आच्छादित है। इन बालुकास्तूपों का अपरदन एवं स्थानांतरण मार्च से जुलाई अत्यधिक होता है।

» शुष्क प्रदेश के उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में हरियाणा, पश्चिम में पाकिस्तान तथा दक्षिण में गुजरात है। इस प्रदेश में कहीं-कहीं चट्टानी सतह व पहाड़ियाँ पाई जाती हैं जैसे- नागौर, बाड़मेर, जालौर, कुचामन, सीकर की पहाड़ियाँ।

थार मरुस्थल विश्व का एकमात्र ऐसा मरुस्थल है जिसके निर्माण में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं का मुख्य योगदान है।

» थार का मरुस्थल भारतीय उपमहाद्वीप में ऋतु चक्र को भी नियंत्रित करता है। ग्रीष्मकाल में तेज गर्मी के कारण इस प्रदेश में न्यून वायुदाब केन्द्र विकसित हो जाता है जो दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं को आकर्षित करता है। ये हवाएँ सम्पूर्ण प्रायद्वीप में वर्षा करती हैं।

»  यह मरुस्थल विश्व के मरुस्थलों में सर्वाधिक आबादी, जनसंख्या घनत्व, सर्वाधिक वनस्पतियुक्त पारिस्थितिकी तथा पशुधन की अधिकता के लिए विख्यात है।

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राजस्थान (RAJASTHAN) की स्थिति, विस्तार, आकृति सम्पूर्ण जानकारी इसके साथ ही राजस्थान की विश्व स्तरीय पर तुलना तथा राज्यों में सर्वप्रथम सूर्य उदय और अस्त तथा इसकी संपूर्ण स्थलीय सीमा, अंतर्राष्ट्रीय सीमा आदि की जानकारी ।

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