Governor: राज्यपाल और उनकी शक्तियाँ सम्पूर्ण जानकारी जाने यहाँ से

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देशी रियासतों के एकीकरण के बाद राजस्थान में राजप्रमुख का पद सृजित किया गया था। राज्य के पहले व एकमात्र राजप्रमुख 30 मार्च, 1949 को जयपुर के भूतपूर्व महाराजा सवाई मानसिंह बनाए गए, जिन्होंने 1 नवम्बर, 1956 तक कार्य किया। राजस्थान में 1 नवम्बर, 1956 को राज्य के पुनर्गठन के बाद राजप्रमुख के स्थान पर राज्यपाल का पद सृजित हुआ।

राज्यपाल (Governor)
राज्यपाल (Governor)

जाने राज्यपाल (Governor) का संविधान में उल्लेख

  • संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत् राज्य की विधायी शक्ति (कानून निर्माण की शक्ति) राज्य विधान मंडल में निहित है।
  • राज्य विधायिका द्वारा राज्य सूची एवं समवर्ती सूची में वर्णित विषयों पर कानून का निर्माण किया जाता है।
  • संविधान के भाग (VI) में अनुच्छेद 168 से अनुच्छेद 202 तक राज्य विधानमंडल से संबंधित प्रावधान शामिल किये गये हैं।
  • प्रत्येक राज्य में एक विधानमंडल है।
  • राज्य विधानमंडल एक सदनीय या दो सदनीय हो सकते हैं।
  • जिनमें प्रथम सदन (निम्न सदन) को विधान सभा और द्वितीय सदन (उच्च सदन) को विधान परिषद् के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
  • प्रत्येक राज्य का विधानमंडल राज्यपाल तथा एक या दो सदनों से मिलकर बनता है।
  • संसद ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित कर जम्मू कश्मीर राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया है 1. लद्दाख 2. जम्मू व कश्मीर। जम्मू कश्मीर संघ शासित प्रदेश में विधान सभा पूर्ववत रहेगी।
  • आंध्रप्रदेश में राज्य विधायिका के द्वितीय सदन ‘विधान परिषद’ का 2007 में गठन किया गया है।
  • तेलंगाना में 2 जून, 2014 को विधानपरिषद् का गठन किया गया।
  • राजस्थान का विधान मंडल एक सदनीय (केवल विधानसभा) है।
राज्यपाल ( Governor )
  • राज्य के प्रथम राज्यपाल सरदार गुरुमुख निहालसिंह बने।
  • राज्य के वर्तमान राज्यपाल (9 सितम्बर, 2019 से) श्री कलराज मिश्र हैं।
  • इससे पूर्व श्री कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल थे।
  • राज्य का संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है।
  • राज्य की समस्त कार्यपालिका व विधायी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं।
  • वह राज्य का प्रथम नागरिक होता हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 153 के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल की व्यवस्था की गई है।
  • संविधान के सातवें संशोधन (1956) के द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि एक ही व्यक्ति दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है।
 नियुक्ति एवं कार्यकाल 
  1. संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  2. अनुच्छेद 156 के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त अपने पद पर बना रह सकता है।
  3. राष्ट्रपति कभी भी राज्यपाल को पदमुक्त कर सकता है, उसे समय से पूर्व वापस बुला सकता है।
  4. सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल पाँच वर्ष का है।
  5. राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेना एक परम्परा है, संवैधानिक आवश्यकता नहीं।
  6. साथ ही यह भी परम्परा है कि राज्यपाल उस राज्य का निवासी न हो, यथा राजस्थान के निवासी को राजस्थान का राज्यपाल न नियुक्त किया जाये।
  7. इस व्यवस्था का उद्देश्य राज्यपाल को उस राज्य की राजनैतिक दलबन्दी से दूर रखना है।
राज्यपाल की योग्यताएँ
  1. वह भारत का नागरिक हो एवं कम से कम 35 वर्ष का हो। •
  2. वह केन्द्र या राज्य विधायिका का सदस्य न हो।
  3. यदि वह सदस्य है जो राज्यपाल का पद ग्रहण करते ही उसका पद रिक्त माना जाएगा।
  4. वह सरकार में किसी लाभ के पद पर नियुक्त न हो।
शपथ
  • राज्यपाल (Governor) को संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति की दशा में वरिष्ठतम न्यायाधीश पद की शपथ दिलाता है।
  • त्यागपत्र: राज्यपाल राष्ट्रपति को सम्बोधित अपना लिखित व हस्ताक्षरित त्यागपत्रप्रेषित कर कभी भी पदमुक्त हो सकता है।
वेतन व अन्य भत्ते
  1. राज्यपाल (Governor) की गरिमा के अनुरूप उसे वेतन, अन्य भत्ते तथा सुविधाएँ मिलती हैं जिनका निर्धारण संसद में बनाये गये कानून द्वारा होता है।
  2. वर्तमान में राज्यपाल का मासिक वेतन 3,50,000 रुपये है।
  3. राज्यपाल (Governor) के कार्यकाल के दौरान उसके वेतन, भत्तों तथा अन्य सुविधाओं को घटाया नहीं जा सकता।

राज्यपाल की शक्तियाँ

(अनु. 163) राज्यपाल (Governor) की शक्तियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:-

1. वे शक्तियाँ जिनका प्रयोग वह मुख्यमंत्री (अथवा मंत्रिपरिषद) की सलाह से करता है।
2. वे शक्तियाँ जिनका प्रयोग वह स्वविवेक के आधार पर करता है।

  • राज्यपाल (Governor) की कार्यपालिका शक्तियाँ संविधान के अनु. 154 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती है।
  • वह राज्य सरकार की कार्यपालिका का प्रधान है।
  • राज्य सरकार का सारा कार्य राज्यपाल के नाम पर चलाया जाता है।
  • राज्यपाल (Governor) की कार्यकारी शक्तियाँ उन सभी विषयों राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषय पर लागू होती है जिन पर राज्य के विधानमण्डल को विधि-निर्माण का अधिकार प्राप्त है।
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ प्रमुख रूप से निम्न हैं
  1.  अनु. 164 के तहत राज्यपाल मुख्यमंत्री व उसकी सलाह से मंत्रि परिषद के सदस्यों की नियुक्ति करता है तथा उनके मध्य कार्य का विभाजन करता है।
  2. मुख्यमंत्री एवं मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत ही पद धारण करते हैं।
  3. राज्यपाल सामान्यतः बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्त करता है।
  4. किसी भी दल को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने पर राज्यपाल स्वविवेक से उस दल के नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है जो विधानसभा में बहुमत सदस्यों का विश्वास प्राप्त कर लेगा।
  5. राज्यपाल (Governor) राज्य के महाधिवक्ता एवं लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  6. महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहता है।
  7. राज्यपाल राज्य के सभी विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता है तथा विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति करता है।
  8. राज्यपाल मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद को पद व उसकी गोपनीयता की शपथ दिलाता है, आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पदच्युत करता है एवं उनके त्याग-पत्र स्वीकार करता है|
अन्य कार्यकारी शक्तियाँ
  • वह राज्य के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त
  • वित्त आयोग’ व लोकायुक्त की नियुक्ति करता है।
  • यदि विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्यों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है तो राज्यपाल उस समुदाय के एक सदस्य को मनोनीत करता है।
  • यदि राज्य में विधान परिषद भी विद्यमान है तो राज्यपाल को विधानपरिषद के कुल सदस्यों के 1/6 भाग हेतु ऐसे व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार है, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाजसेवा आदि विषयों के संबंध में व्यावहारिक ज्ञान व विशेष अनुभव हो।
  • राज्य की सिविल सेवाओं के सदस्य राज्यपाल के नाम पर नियुक्त किए जाते हैं और वे राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करते हैं।
  • राज्यपाल राज्य में संवैधानिक संकट उपस्थित होने अथवा राजनीतिक अस्थिरता या अन्य किसी कारण से सांविधानिक तंत्र की असफलता की स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य की स्थिति के संबंध में राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है।
  • उसके प्रतिवेदन के आधार पर अनु. 356 के अन्तर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
  • इस स्थिति में राज्यपाल संघ सरकार के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है।
  • इसे राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियाँ भी कहा जा सकता है।

 विधायी शक्तियाँ

  • राज्यपाल व्यवस्थापिका का प्रमुख होता है।
  • उसे राज्य विधानसभा का अधिवेशन बुलाने, उसका सत्रावसान करने तथा किसी भी समय विधानसभा को भंग करने का अधिकार प्राप्त है। (अनु. 174)
  • राज्य विधानमंडल द्विसदनीय होने पर वह राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों को पृथक-पृथक या संयुक्त रूप से संबोधित कर सकता है। (अनु. 175)
  • साधारणतया आम चुनाव के बाद नई विधानसभा बनने पर वह उद्घाटन भाषण देता है।
  • राज्यपाल हर वर्ष सदन के पहले सत्र को संबोधित करता है अर्थात अभिभाषण देता है।
  • संविधान के अनु. 200 के तहत विधानमंडल द्वारा पारित कोई विधेयक तय तक कानून का रूप धारण नहीं करता, जब तक राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति नहीं देता।
  • वह चाहे तो विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकता है या सदन के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है या विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ प्रेषित कर सकता है।
  • ऐसे विधेयक को यदि विधानसभा द्वारा संशोधन सहित या संशोधन रहित दोबारा राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो राज्यपाल को हस्ताक्षर करना आवश्यक होता है।
  • वित्त विधेयक को राज्यपाल विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता।
राज्यपाल द्वारा अध्यादेश जारी करना 
  • राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान ही अध्यादेश जारी कर कानून निर्माण का अधिकार है।
  • राष्ट्रपति या राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह पर, विधानमंडल के सत्र में न होने पर किसी आपातकालीन निर्णय की आवश्यकता पूर्ण करने हेतु अनुच्छेद 213 (1) के तहत राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • यह अध्यादेश विधानमंडल द्वारा पारित कानून की भाँति प्रभावी होता है।
  • ये अध्यादेश विधानसभा के सत्र में आने के छः सप्ताह तक जारी रहते हैं।
  • इन 6 सप्ताहों के अंदर भी यदि विधानमंडल उन्हें स्वीकृत नहीं करता तो ये स्वत: समाप्त हो जातेहैं।
  • राज्यपाल इन अध्यादेशों को पहले भी वापस ले सकता है।
  • राज्य लोक सेवा आयोग, राज्य वित्त आयोग तथा नियंत्रक महालेखा परीक्षक की राज्य के खातों से संबंधित रिपोर्टों को वह राज्य विधायिका के समक्ष प्रस्तुत करता है।

 वित्तीय शक्तियाँ

  • राज्यपाल वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने से पूर्व वार्षिक वित्तीय विवरण एवं बजट विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करवाता है वित्तीय विधेयक राज्यपाल की पूर्वानुमति के बाद ही राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत किये जाते हैं।
  • पंचायतों व नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थितियों की समीक्षा के लिए वह प्रत्येक पाँच वर्ष पर एक वित्त आयोग का गठन करता है।

राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ 

  • राज्यपाल राज्य सूची में दिए गए विषयों के संबंध में न्यायालय द्वारा दंडित किए गए व्यक्तियों को क्षमा कर सकता है तथा दंड को निलम्बित या स्थगित कर सकता है (अनु. 161)।
  • परन्तु मृत्यु दण्ड के संबंध में यह शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास है।
  • राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श करता है।
  • राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल राज्य में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति व पदोन्नति से संबंधित विषयों का निर्णय करता है। (अनु. 233)

 राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ (अनु. 163) 

  • संविधान के अनु. 163 के अनुसार राज्यपाल को कतिपय विवेकाधीन शक्तियाँ दी गई है।
  • इस बात का निर्धारण करना स्वयं राज्यपाल का क्षेत्राधिकार है कि कौन सा कार्य उसके विवेकाधिकार के अंतर्गत आता है।
  • राज्यपाल के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग राज्यपाल अपने विवेक या व्यक्तिगत निर्णय से करता है।
  • उसे इस संबंध में मंत्रिपरिषद से परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं है।
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ निम्न हैं
  • संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियाँ: राज्य विधानमंडल द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को अनु. 200 के अंतर्गत राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखने की शक्ति राज्यपाल के स्वविवेक के अधीन है।
  • विधेयक निम्न स्थितियों में राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जा सकता है |
  • विधेयक असंवैधानिक प्रतीत हो, देश के व्यापक हित के विरुद्ध हो या राष्ट्रीय महत्त्व का हो। नीति निर्देशक तत्वों के परोक्ष रूप से विरुद्ध हो। उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता हो। विधेयक अनु. 31 (3) के तहत सम्पत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित हो।
  • अनुच्छेद 167 (सी) के अंतर्गत राज्यपाल (Governor) को अधिकार है कि ऐसा विषय, जिस पर संबंधित मंत्री ने तो निर्णय लिया है- पर मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्तुत नहीं किया गया हो, को मुख्यमंत्री से अपने पास विचारार्थ मंगवा ले। यही राज्यपाल का सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

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