लोक नृत्य और मनोरंजन से रेगिस्तान में रहने वाले लोग और वहां का वातावरण खुशी से खिल उड़ता है। राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध या महत्वपूर्ण नृत्य शैली घूमर है। नृत्य कला भी माननीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है ये एक सार्वभौम कला है जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है बालक जन्म लेते ही रो कर अपने हाथ पैर मार कर अपनी अभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है यही से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। Dance Art of Rajasthan की सभी जानकारी यहाँ है इस कल के कारण विभिन्न पर्यटक यहाँ राजस्थान का मन को मोहने वाला दृश्य देखने के लिए आते हैं।
![Dance Art of Rajasthan](http://learnexams.in/wp-content/uploads/2022/03/Dance-Art-of-Rajasthan.png)
राजस्थान की नृत्य कला (Dance Art of Rajasthan)
राजस्थान की नृत्य कला दो प्रकार की होती है –
- शास्त्रीय नृत्य और
- लोक नृत्य
शास्त्रीय नृत्य :- ऐसा नृत्य जिसमें संगीत, लय, ताल एवं सूर के आधार पर आयोजित नृत्य को शास्त्रीय नृत्यों कहा जाता है।
- शास्त्रीय नृत्य राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य कत्थक नृत्य है।
- कत्थक नृत्य का प्रवर्तक भानु जी महाराज को माना जाता है।
- इसकी शुरुआत जयपुर राजघराने से हुई है।
- उत्तरी भारत का शास्त्रीय नृत्य कत्थक नृत्य है।
- जो लखनऊ से बनारस शुरू हुआ है।
- इस के प्रवर्तक बिरजु जी महाराज माने जाते हैं।
- कत्थक नृत्य का उपनाम :- मंगल मुखी नृत्य, कथाओं का नृत्य आदि ।
- कत्थक नृत्य की वेशभूषा चूड़ीदार पाजामा होता है।
- कत्थक नृत्य में वाद्य यंत्र 100 घुंगरू नाम का वाद्य यंत्र उपयोग में लिया जाता है।
- प्रमुख नृत्यकार – दयाशंकर, भवानी शंकर, हरदेव आदि।
- इस नृत्य की उत्पत्ति ब्राह्मणों द्वारा मंदिर में कथा में की गई थी।
- इस नृत्य का उल्लेख भरत मुनि की पुस्तक नाट्य शास्त्र में मिलता है।
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राजस्थान का रजवाड़ी नृत्य घूमर नृत्य (Ghoomar Dance)
- घूमर नृत्य को 1986 में राज्य नृत्य का दर्जा मिला था।
- घूमर नृत्य के विकास हेतु 1986 ईस्वी में गणगौर घूमर अकादमी की स्थापना की गई थी।
- घूमर नृत्य की उत्पत्ति मध्य एशिया का भंग नृत्य से हुई है ।
- घूमर नृत्य विश्व का चौथे नंबर पर सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य है।
- घूमर नृत्य को नृत्यो की आत्मा, नृत्यो का सिरमोर का जाता है।
- घूमर नृत्य की वेशभूषा 80 / 120 कली का लहंगा है।
- घूमर नृत्य का आयोजन गणगौर के अवसर पर राजकीय कार्यक्रम के अवसर पर और मांगलिक अवसर पर किया जाता है।
- घूमर नृत्य पुरुष रस प्रधान नृत्य है जो केवल महिलाओं द्वारा अष्टताल पद्धति में आयोजन होता है।
- अविवाहित या बालिकाओं द्वारा इस नृत्य को आयोजन करने पर ऐसे झुमरिया नृत्यों का जाता है।
- घूमर नृत्य को राजस्थान का रजवाड़ी नृत्य भी कहा जाता है।
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राजस्थान के लोक नृत्य को चार भागों में विभाजित किया गया है
- धार्मिक नृत्य
- व्यवसायिक नृत्य
- क्षेत्रीय नृत्य
- जनजातिय नृत्य
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धार्मिक नृत्य(Religous Dance)
किसी धार्मिक मान्यता लोक देवता, देवी एवं संतो को समर्पित नृत्य को धार्मिक नृत्य कहते हैं।
कृष्ण अष्टमी के दिन आयोजित कानुडा नृत्य
- कानूडा नृत्य (चौहटन) बाड़मेर का प्रसिद्ध नृत्य है।
- यह कृष्ण अष्टमी के दिन आयोजित किया जाता है।
- नृत्य स्थल को कान्हा अखाड़ा का जाता है।
- कानुडा नृत्य में गीत रसिया जो भगवान श्री कृष्ण की प्रशंसा के लिए गाया जाता है।
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संत जसनाथ जी की आराधना में अग्नि नृत्य
- अग्नि नृत्य (कतरियासर) बीकानेर का प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य में संत जसनाथ जी की आराधना की जाती है।
- संत जसनाथ जी की समाधि पर अश्विन शुक्ला सप्तमी को इस नृत्य का आयोजन होता है।
- नृत्य स्थल को धूणा का जाता है।
- जिस समय अग्नि नृत्य करने जाते हैं उस समय फतेह फतेह का नारा दिया जाता है।
- अग्नि नृत्य करने में निपुण व्यक्ति को सिद्ध का जाता है।
- अग्नि नृत्य का प्रवर्तक रूस्तमजी माना जाता है।
- प्रसिद्ध अग्नि नृत्य का लाल नाथ जी, चौक का नाथ जी है।
- अग्नि नृत्य का संरक्षण गंगा सिंह बीकानेर वालों ने दिया था।
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कमाडिया पंत की महिलाओं द्वारा आयोजित तेरहताली नृत्य
- तेरहताली नृत्य (रुणिचा) जैसलमेर का प्रसिद्ध है।
- लोक देवता रामदेव जी की आराधना में या हिंगलाज माता के मंदिर में किया जाने वाला नृत्य है।
- इसमें वाद यंत्र 13 मंजीरे हैं।
- सहायक वाद यंत्र रावण्हत्ता व तदुरा है।
- कमाडिया पंत की महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है।
- महिलाओं द्वारा घरेलू कार्यों का प्रदर्शन किया जाता है।
- तेरहताली नृत्य का उद्गम पादरला गांव- पाली से माना जाता है।
- तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना मांगी बाई को माना जाता है।
- अन्य प्रमुख कलाकार नारायणी देवी, शांताबाई है।
- पुरुष कलाकार लक्ष्मण दास व मनोहर दास को माना जाता है।
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सातलदेव के काल में प्रारंभ घुड़ला नृत्य
- घुड़ला नृत्य जोधपुर का प्रसिद्ध नृत्य है।
- जोधपुर शासक सातलदेव के काल में प्रारंभ हुआ था।
- यहाँ नृत्य का चैत्र मास में आयोजित होता है।
- घुड़ला नृत्य महिलाओं द्वारा अपने सिर पर छिद्र युक्त मटका रखकर आयोजित होने वाला नृत्य है।
- इस नृत्य को संरक्षण रूपायन संस्था बोरुंदा जोधपुर ने दिया था।
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अन्य प्रमुख नृत्य
- गवरी नृत्य व राई नृत्य भील जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
- थाली नृत्य जोधपुर का प्रसिद्ध नृत्य है चैत्र मास अमावस्या को आयोजित होने वाला नृत्य है इस दिन पाबूजी का मेला होता है।
- छमछडी नृत्य मेवाड़ का प्रसिद्ध है।
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व्यवसायिक नृत्य :- वह नृत्य जिसका मुख्य उद्देश्य अपनी आजीविका चलाना और पैसा कमाना होता है उसे व्यवसायिक नृत्य का जाता है।
व्यवसायिक नृत्य में मुख्य रूप से तीन प्रकार के नृत्य होते हैं।
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- भवई नृत्य
- कच्ची घोड़ी नृत्य
- चरी नृत्य
केकड़ी अजमेर का प्रसिद्ध भवई नृत्य (Bhavai dance )
- भवई नृत्य का उद्गम सर्वप्रथम गुजरात में हुआ और गुजरात से मेवाड़ में आया।
- वर्तमान में भवई नृत्य केकड़ी अजमेर का प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य के प्रवर्तक नागौजी जाट और बाघौजी जाट माने जाते हैं।
- भवई जाति के युगल नृत्य है।
- इस नृत्य में सिर पर मटके रखकर नंगे पाव नकली वस्तुओं पर किया जाने वाला नृत्य है।
- इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना अस्मिता काला है।
- इस नृत्य के प्रसिद्ध नृत्यकार रूप सिंह और प्रदीप पुष्कर है।
- इस नृत्य को सर्वप्रथम प्रस्तुत पुष्पा व्यास ने किया था।
- इसी नृत्य को वीणा अजमेरा की प्रस्तुति के समय ज्ञानदीप नृत्यों का गया है।
- इस नृत्य को संरक्षण भारतीय लोक कला मंडल (उदयपुर) जिसकी स्थापना 22 फरवरी 1952 में हुई थी इसकी स्थापना देवीलाल सामर ने स्थापित किया था।
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तेज गति में आयोजित कच्ची घोड़ी नृत्य (Raw mare Dance)
- कच्ची घोड़ी नृत्य सीकर (शेखावाटी क्षेत्र) का प्रसिद्ध है यहाँ डीडवाना व कुचामन (नागौर) का भी प्रसिद्ध है।
- इस नृत्य का उद्गम मराठो और राजस्थानी के बीच संघर्ष को लेकर हुआ था।
- इस नृत्य को करते समय लश्कारिया गीत गाया जाता है।
- इस नृत्य का वाद्य यंत्र झांझ और घूंघरू है।
- इस नृत्य को करते समय अपने कमर पर बांस की घोडी बांधते हैं जिसे चितलाई कहां जाता है।
- प्रसिद्ध नृत्य कार छावरचंद गहलोत और गोविंद पारीक है।
- कच्ची घोड़ी नृत्य तेज गति में आयोजित होने वाला नृत्य है।
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NH8/NH48 पर आयोजित चरी नृत्य
- NH8/NH48 पर आयोजित होने वाला नृत्य है।
- चरी नृत्य प्रसिद्ध किशनगढ़ (अजमेर) का है।
- इस नृत्य को गुर्जर जाति की महिलाएं करती है।
- इस नृत्य का आयोजन बरात के अवसर में व मांगलिक अवसर पर किया जाता है।
- इस नृत्य को करते समय रावालिया गीत गाया जाता है।
- इसनृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना फलकू बाई हैं।
- वर्तमान में प्रसिद्ध नृत्यांगना सुनीता रावत है।
- इस नृत्य को पश्चिमी राजस्थान में चिरमी नृत्य भी कहा जाता है।
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क्षत्रिय नृत्य
बीमारी के फैलने से बचने हेतु धमक – मुसल नृत्य
- यह नृत्य जोधपुर का प्रसिद्ध है।
- इसके साथ ही जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में भी आयोजन होता है।
- इस नृत्य की प्रमुख मान्यता एक ही बीमारी से 8-10 बीमारियां हो जाए तो उस बीमारी के फैलने से बचने हेतु किया जाने वाला नृत्य है।
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विवाह के अवसर पर आयोजन ढोल नृत्य
- ढोल नृत्य सांचौर (जालौर) का प्रसिद्ध नृत्य है।
- इस नृत्य का आयोजन विवाह के अवसर पर होता है।
- इस नृत्य की खीव सिंह राठौड़ के प्रेम विवाह से शुरुआत हुई है।
- इस नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जय नारायण व्यास हो जाता है।
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होली के अवसर पर गैर नृत्य
- यह बाड़मेर का प्रसिद्ध है ।
- गैर नृत्य का आयोजन होली के अवसर पर किया जाता है।
- इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं।
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शाहजहां के काल का प्रसिद्ध नाहार नृत्य
- माण्डल (भीलवाड़ा) का प्रसिद्ध नृत्य है।
- यह नृत्य शाहजहां के काल का प्रसिद्ध नृत्य है।
- रंग पंचमी से रंग तेरस तक होने वाला नृत्य है।
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प्रथम बार जमाई के आगमन पर किलियो बोरियों नृत्य
- किलियो बोरियों नृत्य मारवाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है।
- वर्तमान में मेवात क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है।
- किलियो बोरियों नृत्य का आयोजन घर पर प्रथम बार जमाई के आगमन पर किया जाने वाला नृत्य है।
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